Thursday, June 16, 2022

जीवन -यात्रा

नीर बरसा कभी - कभी धरती जली 
कभी पतझड़ कभी रुत बसन्ती खिली 
              रितु आती रही और बदलती रही 
              चक्र चलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
 
कभी हँसते रहे  - कभी रोते रहे
कभी जागा किए कभी सोते रहे
             दिल धड़कता रहा सांस चलती रही
             वक़्त कटता रहा - उम्र ढ़लती रही !!

कुछ किताबें पढ़ीं - ज्ञान चर्चा सुनी
कुछ निज धारणाओं की चादर बुनी
          कोई मिटती रही, कोई बनती रही
          ज्ञान मिलता रहा -उम्र ढ़लती रही !!

मैं  तस्वीर अपनी  बनाता  रहा
आईना कुछ और ही दिखाता रहा
              प्रतिष्ठा  की  इच्छा  पनपती रही
             अहं बढ़ता रहा - उम्र ढ़लती रही !!

नज़र घटने लगी, बाल पकने लगे
जिस्म थकने लगा, दाँत गिरने लगे
           कामना फिर भी मन में मचलती रही
           चित्त चलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!

खोया है क्या  - हमने  पाया है क्या
क्या तोड़ा है 'राजन ' बनाया है क्या 
              ये  चिंता  हमेशा  ही  खलती  रही
             मन उड़ता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
                       ' राजन  सचदेव  '

6 comments:

  1. Bahoot hee khoobsurat ji.🙏

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  2. वाह - बहुत खूब

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  3. Wonderful & thought provoking....

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  4. Bahut hee khoobsurt ji🙏🙏🌹🌹

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  5. Nice nice Mahatma ji dhanyvad

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  6. 👍👍👌🏻wahji🌷🙏🏻

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