नीर बरसा कभी - कभी धरती जली
कभी पतझड़ कभी रुत बसन्ती खिली
रितु आती रही और बदलती रही
चक्र चलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
कभी हँसते रहे - कभी रोते रहे
कभी जागा किए कभी सोते रहे
दिल धड़कता रहा सांस चलती रही
वक़्त कटता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
कुछ किताबें पढ़ीं - ज्ञान चर्चा सुनी
कुछ निज धारणाओं की चादर बुनी
कोई मिटती रही, कोई बनती रही
ज्ञान मिलता रहा -उम्र ढ़लती रही !!
मैं तस्वीर अपनी बनाता रहा
आईना कुछ और ही दिखाता रहा
प्रतिष्ठा की इच्छा पनपती रही
अहं बढ़ता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
नज़र घटने लगी, बाल पकने लगे
जिस्म थकने लगा, दाँत गिरने लगे
कामना फिर भी मन में मचलती रही
चित्त चलता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
खोया है क्या - हमने पाया है क्या
क्या तोड़ा है 'राजन ' बनाया है क्या
ये चिंता हमेशा ही खलती रही
मन उड़ता रहा - उम्र ढ़लती रही !!
' राजन सचदेव '
Bahoot hee khoobsurat ji.🙏
ReplyDeleteवाह - बहुत खूब
ReplyDeleteWonderful & thought provoking....
ReplyDeleteBahut hee khoobsurt ji🙏🙏🌹🌹
ReplyDeleteNice nice Mahatma ji dhanyvad
ReplyDelete👍👍👌🏻wahji🌷🙏🏻
ReplyDelete