Monday, April 27, 2020

बहुत गई - थोड़ी रही - थोड़ी भी कट जाई

                                     एक पुरातन कथा 

एक बार एक राजा ने अपने दरबार में एक उत्सव रखा 
जिस में अपने मित्रों और राज्य के गणमान्य व्यक्तियों एवं अपने गुरु को भी सादर आमन्त्रित किया ।
उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया ।
तीन पहर रात तक नृत्य और गायन चलता रहा।
तभी नर्तकी ने गाते गाते एक दोहा पढ़ा -
                         " बहुत गई - थोड़ी रही - थोड़ी भी कट जाई
                        थोड़ी देर के कारने - कहीं कलंक नाहिं लग जाई "

नृत्य करते हुए नर्तकी ने यह दोहा तीन चार बार दोहराया।

तभी अचानक युवराज अर्थात राजा के पुत्र ने अपना रत्न जड़ित हार उतारकर नर्तकी को भेंट कर दिया ।
यह दोहा सुनते ही राजा की लड़की ने भी अपने रत्न जड़ित स्वर्ण कंगन उतार कर नर्तकी को भेंट कर दिए।
महाराज के कानो में जब ये आवाज़ पड़ी तो वो भी धीरे धीरे अपने सिंहासन पर बैठे बैठे थोड़ा आगे की ओर खिसकने लगे 
और सेवक को एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ नर्तकी को देने का आदेश दिया।
जब यह दोहा महाराज के गुरु जी ने सुना तो उन्होंने भी अपनी सारी स्वर्ण मुद्राएँ उस नर्तकी को अर्पण कर दीं ।

यह सब देख कर राज मंत्री बहुत हैरान हुआ।
वह सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा है पर यहअचानक एक दोहा सुन कर सब लोग इतनी मूल्यवान वस्तुएं नर्तकी को क्यों भेंट कर रहें हैं। यहां तक कि उस नर्तकी के सभी साथी वादकों ने भी उसे अपनी तरफ से कुछ न कुछ दिया।
मंत्री ने तबला वादक से पूछा कि आप लोग तो सब साथ में गाते बजाते हो और अपना अपना पारिश्रमिक लेते हो। तो ऐसा क्या हुआ कि आपने उस नर्तकी को अपने पारिश्रमिक का आधा हिस्सा दे दिया ?
तबला वादक ने कहा कि बात ये है कि इतनी देर रात तक हम सब अपने साज़ बजाते बजाते थक गए थे। 
जब नर्तकी ने देखा कि तबला वादक एवं सभी संगीत वादक तक कर ऊँघ रहे हैं और उसने सोचा कि तीन पहर रात तो बीत चुकी है। 
अब थोड़ी सी रात ही बाकी है। अगर महाराज ने सबको ऊँघते देख लिया तो कहीं सभी को दंड न दे दें। इसलिए उनको सावधान करना ज़रुरी है। यह सोच कर उन को सावधान करने के लिए नर्तकी ने गाते गाते यह दोहा पढ़ा था।
                 " बहुत गई - थोड़ी रही - थोड़ी भी कट जाई
             थोड़ी देर के कारने - कहीं कलंक नाहिं लग जाई "
और यह सुनते ही हम सभी वादक एकदम सतर्क होकर अपना अपना साज़ बजाने लगे। 
लेकिन अगर यह हमें सावधान न करती तो हमें पारिश्रमिक की जगह दंड मिल सकता था।
मंत्री ने युवराज से पूछा कि एक दोहा सुन कर आपने इतना कीमती हार क्यों दे दिया ?
युवराज ने कहा - " मैं बहुत देर से राजा बनने के स्वप्न देख रहा हूँ। पिता जी वृद्ध हो गए हैं लेकिन फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे ।
मैंने आज सुबह होते ही अपने सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था ।
लेकिन इस नर्तकी के दोहे को सुन कर मैंने सोचा कि आज नहीं तो कल - आखिर राज तो मुझे ही मिलना है। बहुत समय बीत गया - थोड़ा और सही। अब थोड़ी देर के लिए क्यों मैं अपने पिता की हत्या का कलंक अपने सिर पर लूँ ?
नर्तकी के इस दोहे ने मुझे पिता का हत्यारा होने से बचा दिया इसलिए जो मैंने इसे दिया वो बहुत ही कम है "

मंत्री जी ने राजकुमारी से पूछा तो उस ने कहा - "मंत्री जी ! मैं जवान हो गयी हूँ । लेकिन मेरे पिता आँखें बन्द किए बैठे हैं - मेरी शादी नहीं कर रहे - आज रात मैंने अपने प्रेमी के साथ भागने की तैयारी की हुई थी। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर - आज नहीं तो कल तेरी शादी हो ही जाएगी। इस बात ने मुझे अपने पिता को कलंकित करने से रोक लिया"

मंत्री ने हिम्मत कर के महाराज से भी इसका कारण पूछ लिया।
महराज ने कहा कि मैं वृद्ध हो गया हूँ। मुझसे राज्य का भार नहीं संभाला जा रहा। मैं चाहता था कि पुत्र को राजपाट सौंप कर शेष आयु आत्म-ज्ञान और प्रभु भजन में लगा दूँ लेकिन राज-ऐश्वर्य और राज्य-शक्ति के लोभ ने मुझे रोक रखा था। इस नर्तकी के गीत ने मुझे समझा दिया कि बहुत आयु बीत गई है - थोड़ी रहती है वो भी ठीक ही बीत जाएगी। अब इस राज्य के लोभ को छोड़ देना ही ठीक है। तो मैंने मन में निश्चय कर लिया कि सुबह होते ही युवराज का राजतिलक कर दूंगा।

जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे - "महाराज ! इस नर्तकी के इस दोहे ने मेरी भी आँखें खोल दी हैं । मुझे लगता था कि इतने साल साधना - तपस्या आदि करके मुझे क्या मिला। मैं भी अगर कुछ और करता तो शायद अच्छा रहता।
इस ने मुझे समझा दिया कि बहुत समय भक्ति साधना में बीता अब थोड़ी बची आयु में अपने मार्ग से विचलित होना अच्छा नहीं।

यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा - "मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए - उन की सोच बदल गई तो मुझे भी सोचना चाहिए।
ऐसा सोच कर नर्तकी के मन में भी वैराग्य आ गया ।


नोट : ये कहानी 1975-76 में जम्मू के एक वयोवृद्ध महात्मा अमर नाथ गुप्ता जी अक़्सर सुनाया करते थे 
                                              " राजन सचदेव "

8 comments:

  1. बहुत ज्ञानवर्दक

    ReplyDelete
  2. अति सुन्दर

    ReplyDelete
  3. ज्ञानवर्धक कहानी

    ReplyDelete
  4. अति सुन्दर

    ReplyDelete
  5. 🙏🙏🙏🙏sadar pranam 🙏🙏🙏

    ReplyDelete

Who is Lord Krishn कौन और क्या हैं भगवान कृष्ण

Anupam Kher explains              Who or what is Lord Krishn   कौन और क्या हैं भगवान कृष्ण  -- अनुपम खैर  With English subtitles    ⬇️