Sunday, June 12, 2022

वक़्त की उँगली पकड़े रहना अच्छा लगता है

वक़्त की उँगली पकड़े रहना अच्छा लगता है 
हम को चलते-फिरते रहना अच्छा लगता है 

एक समंदर, लाखों दरिया, दिल में इक तूफ़ान 
शाम-ओ-सहर यूँ मिलते रहना अच्छा लगता है 

कितनी रातें  सोते सोते गुज़रीं  ख़्वाबों में 
लेकिन अब तो जगते रहना अच्छा लगता है 

सच के दरवाज़े पर  दस्तक देता रहता हूँ 
आग की लपटें ओढ़े रहना अच्छा लगता है 

फूलों के खिलने का मौसम दूर तलक लेकिन 
ग़ुंचा ग़ुंचा सिमटे रहना  अच्छा लगता है 

लम्हा-लम्हा पल-पल मैं ने तुम से बातें कीं 
पास तुम्हारे बैठे रहना  अच्छा लगता है 

सूरज ओढ़ा, तारे ओढ़े, ओढ़े दिन और रात 
हम को जलते-बुझते रहना अच्छा लगता है 

तन्हाई में बैठ के  पहरों  तुम से बातें कीं 
हम को ग़ज़लें पढ़ते रहना अच्छा लगता है 

कितने सारे चेहरे बदले लेकिन अब 'खुल्लर' 
एक सलीक़ा ओढ़े रहना अच्छा लगता है 

         रचनाकार : विशाल खुल्लर

3 comments:

  1. Mujhe bhi aapke valuable thoughts read KARNA ACHHA LAGTA HAI!

    ReplyDelete
  2. Please interpret
    सच के दरवाज़े पे दस्तक देता रहता हूँ
    आग की लपटें ओड़े रहना अच्छा लगता

    ReplyDelete

न समझे थे न समझेंगे Na samjhay thay Na samjhengay (Neither understood - Never will)

न समझे थे कभी जो - और कभी न समझेंगे  उनको बार बार समझाने से क्या फ़ायदा  समंदर तो खारा है - और खारा ही रहेगा  उसमें शक्कर मिलाने से क्या फ़ायद...