खोजत खोजत मै फिरा खोजउ बन थान
अछल अछेद अभेद प्रभ ऐसे भगवान ॥
कब देखउ प्रभु आपना आतम कै रंगि ॥
जागन ते सुपना भला बसीऐ प्रभ संगि ॥१॥ रहाउ ॥
बरन आसरम सास्त्र सुनउ दरसन की पिआस
रुपु न रेख न पंच तत ठाकुर अबिनास ॥
ओहु सरुप संतन कहहि विरले जोगीसुर
करि किरपा जा कउ मिले धनि धनि ते ईसुर ॥
सो अंतरि सो बाहरे बिनसे तह भरमा
नानक तिसु प्रभु भेटिआ जा के पूरन करमा ॥
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शब्दार्थ :
मैं भगवान की खोज में वनों -जंगलों और अन्य स्थानों में इधर-उधर भटकता - घूमता फिरता रहा
ऐसे प्रभु को - जो अछल अछेद और अभेद है -
(प्रभु तो अविनाशी और समझ से बाहर हैं।)
मैं कब अपने प्रभु को आत्मा के रंग में देख पाउँगा ?
अर्थात केवल बाहरी रुप से नहीं - केवल बौद्धिक एवं मानसिक स्तर पर ही नहीं बल्कि आत्मा के स्तर पर अनुभव कर पाउँगा )
जागने से तो वह सपना बेहतर है जिसमें प्रभु का साथ हो -
जाग्रत अवस्था से तो उस स्वप्न की अवस्था अच्छी है जिसमे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का एहसास रहता हो ।
शास्त्रों में (आध्यात्मिक जीवन की) विभिन्न अवस्थाओं और चरणों (stages & steps) के बारे में पढ़-सुन कर मन में प्रभु-दर्शन की प्यास जग गई है।
ऐसे प्रभु के दर्शन की प्यास - जिस की कोई रुप रेखा नहीं है, और जो न ही पांच तत्वों से बना है - जो सनातन है - अमर है - अविनाशी है।
जो ईश्वर के ऐसे सुंदर रुप का वर्णन और ध्यान करते हैं ऐसे संत और महान योगी विरले ही होते हैं।
धन्य धन्य हैं वह लोग - जिन्हें प्रभु की कृपा से मिलाप हो जाता है।
वह (ईश्वर) अंतर भी है और बाहर भी - हर जगह परिपूर्ण है - यह जानकर (इसका सही ज्ञान होने के बाद) उनके सारे संशय दूर हो जाते हैं।
हे नानक - प्रभु उन्हें मिलते हैं जिनके कर्म पूर्ण अथवा सिद्ध होते हैं।
(जारी रहेगा )
सही बात है। जागने की प्रतिक्रिया पीड़ादायक लग सकती है क्यूँकि स्वप्न में खोया इंसान ईश्वर को रूप अथवा नाम देकर अपने मोह के बहाव को उस ओर ले जा सकता है और संतुष्ट एवं परिपूर्ण महसूस कर सकता है। परंतु यह एहसास केवल मानसिक और शारीरिक स्तर तक सीमित रहता है, आत्मा के स्तर तक पहुँचने के लिए जाग्रत होना अनिवार्य है और यह जानना भी ज़रूरी है कि ईश्वर रूप और नाम दोनों से परे है।
ReplyDelete- प्रियल
As I mentioned in the end that this topic will continue. I was going to touch on this point in the next blog tomorrow - and share my views about how the stages of Waking and Dreaming should be understood in the context of this Shabad.
DeleteAnd as well as on the last verse - which says - those achieve whose Karmas are perfect - jaa kay puran karmaa
प्रियल जी धन्यवाद
Deleteये सत्य है कि आत्मा के स्तर तक पहुँचने के लिए जाग्रत होना अनिवार्य है
जैसा कि मैंने अंत में उल्लेख किया है - यह विषय जारी रहेगा।
मैं इस विषय पर कल अगले ब्लॉग में चर्चा करने वाला था -
कि मेरे विचार में इस संदर्भ में जाग्रत और स्वप्न का क्या अर्थ लिया जाना चाहिए।
और साथ ही अंतिम पंक्ति में आए शब्द - "जा के पूरन करमा" -- पर भी।
आपने ये भी सही कहा है कि
Delete"यह जानना भी ज़रूरी है कि ईश्वर रूप और नाम दोनों से परे है।"
और इस पूरे शब्द का भाव भी यही है
जैसा कि इस पद में आए हुए अनेक शब्दों से स्पष्ट है
"अछल अछेद अभेद प्रभ ऐसे भगवान
सो अंतरि सो बाहरे
रुपु न रेख न पंच तत ठाकुर अबिनास "
इत्यादि शब्द इसी तरफ संकेत करते हैं कि ईश्वर नाम रुप से परे है
Beautiful.🙏
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