Sunday, June 12, 2022

सच के दरवाज़े पे दस्तक देता रहता हूँ

आज सुबह मैंने विशाल खुल्लर की लिखी एक ग़ज़ल पोस्ट की थी 
उस ग़ज़ल में आए एक शेर की व्याख्या करने के लिए कहा गया है जो इस तरह है :
 
                           सच के दरवाज़े पे दस्तक देता रहता हूँ 
                          आग की लपटें ओढ़े रहना अच्छा लगता है

लेखक कह रहा है कि मैं सत्य का द्वार खटखटाता रहता हूँ -
अर्थात मैं हर चीज के पीछे के सच की खोज करता रहता हूं।
(हालाँकि)  यह आग से खेलने जैसा है -
क्योंकि लीडर - नेता, शासकवर्ग के लोग और वरिष्ठ अधिकारी नहीं चाहते कि आम लोगों को सच्चाई का पता चले।

सत्य को प्रकट करना - सत्य का अनावरण करना अपने आप को आग की लपटों में लपेटने जैसा है --
आग की लपटें ओढ़ने जैसा है  
(लेकिन फिर भी) अच्छा लगता है

मीडिआ तो अपने मतलब की बात का प्रसारण करता है - उसे अपने आशय के अनुसार पेश करने की कोशिश करता है - 
ये हमारा फ़र्ज़ है कि हम असल सच्चाई को जानने की कोशिश करें 

No comments:

Post a Comment

One day, we will too..... Ek din ham bhi ....

During the recent visit of Respected Raj Mami ji and Narinder Mama ji to Chicago, we almost continually talked about Bhapa Ram Chand ji Maha...