आज सुबह मैंने विशाल खुल्लर की लिखी एक ग़ज़ल पोस्ट की थी
उस ग़ज़ल में आए एक शेर की व्याख्या करने के लिए कहा गया है जो इस तरह है :
सच के दरवाज़े पे दस्तक देता रहता हूँ
आग की लपटें ओढ़े रहना अच्छा लगता है
लेखक कह रहा है कि मैं सत्य का द्वार खटखटाता रहता हूँ -
अर्थात मैं हर चीज के पीछे के सच की खोज करता रहता हूं।
(हालाँकि) यह आग से खेलने जैसा है -
क्योंकि लीडर - नेता, शासकवर्ग के लोग और वरिष्ठ अधिकारी नहीं चाहते कि आम लोगों को सच्चाई का पता चले।
सत्य को प्रकट करना - सत्य का अनावरण करना अपने आप को आग की लपटों में लपेटने जैसा है --
आग की लपटें ओढ़ने जैसा है
(लेकिन फिर भी) अच्छा लगता है
मीडिआ तो अपने मतलब की बात का प्रसारण करता है - उसे अपने आशय के अनुसार पेश करने की कोशिश करता है -
ये हमारा फ़र्ज़ है कि हम असल सच्चाई को जानने की कोशिश करें
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