Thursday, July 9, 2020

वृक्ष कबहुँ न फल भखै - नदी न संचय नीर

                      वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर
                         परमार्थ के कारने साधुन धरा शरीर
                                                                     कबीर जी 

अर्थात:  वृक्ष कभी अपने फल फूल इत्यादि स्वयं नहीं खाते
नदियाँ कभी अपनी बहती धारा का जल अपने लिए बचा कर नहीं रखतीं - अपना जल स्वयं नहीं पीतीं 

कबीर जी के अनुसार परमार्थ का अर्थ है  - त्याग 
साधू वही है जो इन गुणों से परिभूषित हो। 

शास्त्रों में मानव जीवन को कर्म योनि कहा गया है - भोग योनि नहीं। 
मानव के अतिरिक्त सभी जीव - अर्थात पशु पक्षी इत्यादि भोग योनि कहलाते हैं। 
वे न तो अपना उद्धार अथवा उत्थान कर सकते हैं और न ही दूसरों का।
इंसान की तरह पशु पक्षी इत्यादि जीव अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोई साधन - कोई नया आविष्कार नहीं कर सकते। 
यह कला एवं सामर्थ्य केवल मानव को मिली है।  
इसलिए - कबीर जी कहते हैं कि मानव जीवन पाकर अधिक से अधिक परमार्थ के कार्य, दीन दुखियों की सहायता और सेवा करनी चाहिए। यही साधू अर्थात सज्जन पुरुषों का काम है। 
दुर्भाग्य से आज के साधू संत एवं महात्मा लोग ग़रीबों से धन इकठ्ठा कर के अपने लिए बड़े बड़े महल बनवा लेते हैं और ग़रीबों से लिए हुए धन से खरीदी हुई अत्यंत महँगी कारों में घूमते दिखाई देते हैं। 
रहीम का कथन है -
           ज्यों जल बाढ़े नाव में - घर में बाढ़े दाम 
          दोनों हाथ उलीचिए यही सज्जन कौ काम 

आज हमारी मानसिकता निजस्वार्थ और भौतिक धनभोग एवं इन्द्रिय-सुख तक ही सीमित हो चुकी है। 
केवल अच्छा पढ़ने, सुनने अथवा कहने से ही कोई अच्छा नहीं बन जाता। मानव जीवन केवल अपने और अपने घर-परिवार के पालन पोषण तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। अपनी क्षमता व सामर्थ्य के अनुसार ज़रुरतमंदों की मदद करना - समाजिक व नैतिक कार्यों में योगदान देना ही मानवता कहलाता है। 
                                                        ' राजन सचदेव '

5 comments:

  1. धन निरंकार जी
    ऐसी मानसिकता निजस्वार्थ भावना भक्ति के लिए हो जाए तो आनंद ही आनंद है

    ReplyDelete
    Replies
    1. हा मानवता सर्वोपरि धर्म है

      Delete
  2. SHARING IS CARING. APT QUOTE WITH UNIVERSAL VALUE.

    ReplyDelete
  3. परिवर्तन होगा परंतु समय आने पर

    ReplyDelete

Jab tak saans chalti hai - As long as the breath continues

      Uthaana khud hee padta hai thakaa toota badan 'Fakhri'       Ki jab tak saans chalti hai koi kandhaa nahin detaa              ...