Tuesday, June 21, 2022

भगवद गीता - परिचय

भगवद गीता का शाब्दिक अर्थ है भगवान का गीत।
यह लगभग पाँच से सात हज़ार साल पहले की रचना है।
यह मूल रुप से संस्कृत में लिखा गया एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ है जो महाभारत के भीष्म पर्व के अध्याय
23-40 का एक हिस्सा है।
इसमें
18 अध्याय और कुल 700 श्लोक हैं।

भगवद गीता को एक धार्मिक ग्रंथ होने के साथ-साथ क्रियात्मक जीवन की कुंजी भी माना जाता है -
एक ऐसी मनोवैज्ञानिक पुस्तक - जो जीवन जीने का एक अनूठा ढंग दिखाती है 
जिस से हर व्यक्ति तनाव-रहित हो कर एक खुशहाल और शांतिपूर्ण जीवन का आनंद ले सके।

पहली नज़र में, ऐसा लगता है कि यह एक पारिवारिक झगड़े की गाथा है - 
चचेरे भाइयों और उनके सहयोगियों के बीच उनके राज्य के क्षेत्रीय विवाद को लेकर युद्ध की कहानी है। 
कुछ लोग इसे इस रुप में देखते हैं कि भगवान कृष्ण अर्जुन को अपने और अपने धर्मयुक्त भाईयों के उचित अधिकारों के लिए दुष्ट, अन्यायी, लालची और सत्ता के भूखे कौरवों के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा दे रहे हैं।

लेकिन अगर अन्य भारतीय शास्त्रों की तरह हम विवाद - संघर्ष और युद्ध की इस कहानी को भी एक रुपक - एक अलंकार के रुप में देखें तो इसका अर्थ बदल जाएगा ।
यदि गहरे आध्यात्मिक स्तर पर देखा जाए तो यह मन और बुद्धि के बीच असहमति और टकराव - धर्म और कर्म के क्षेत्रों में असमानता और अलगाव -
विचार और कर्म के बीच की दरार - विवाद और संघर्ष की गाथा है।  

                              भगवद गीता के मुख्य पात्र
1. धृतराष्ट्र - नयनहीन अंधे राजा - जो महाभारत के युद्ध का मुख्य कारण थे।
2. संजय -  महाराज धृतराष्ट्र को युद्ध के मैदान में आँखों देखा हाल सुना रहे थे।
3. अर्जुन - शिष्य - जो उद्विग्न और भ्रांत है - कर्तव्यविमूढ़ - दुविधा में उलझा हुआ व्याकुल,और परेशान  है।  
      जिसे ज्ञान और दिशा-निर्देश की आवश्यकता है।
4. कृष्ण -  गुरु, मार्गदर्शक और प्रेरक - 
    कहीं दूर से उपदेश देने वाले नहीं - बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर साथ रह कर मार्ग दर्शन करने वाले प्रबुद्ध गुरु।

प्रारंभिक परिचय के बाद, पूरी गीता में शिष्य अर्जुन और गुरु कृष्ण के बीच का संवाद है।
इसलिए, ये कहा जा सकता है कि भगवद गीता में केवल दो मुख्य पात्र हैं:
अर्जुन  - जिज्ञासु - लेकिन भ्रमित उद्विग्न और कर्तव्यविमूढ़ शिष्य।
और भगवान कृष्ण - प्रबुद्ध गुरु - जो अंत तक अपने शिष्य के साथ रहे और व्यक्तिगत रुप से हर कदम पर उस का मार्गदर्शन करते रहे।

ऐसा लगता है कि महाभारत के युद्ध का मुख्य कारण धृतराष्ट्र ही थे ।
हालाँकि वो पूरी भगवद गीता में केवल एक बार ही बोले - सिर्फ पहले श्लोक में।
लेकिन कौन कितना बोलता है - इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।
केवल कुछ ही शब्द बोलने से - या कुछ भी न बोलने से भी कई बार बहुत भारी नुकसान हो सकता है।
गलत को ग़लत न कहने से - अन्याय होता देख कर भी मूक दर्शक बने रहने से अन्याय करने वालों का हौसला और बढ़ जाता है 
और वो पहले से भी अधिक अन्याय करने लगते हैं ।

धृतराष्ट्र जानते थे कि उनके परिवार में क्या हो रहा है - लेकिन फिर भी उन्होंने आंखें मूंदे रखीं।
उन का मन अपने पुत्रों के प्रति अत्यधिक एवं अनावश्यक लगाव के कारण अंधा हो गया था ।
वह अपनी सारी सम्पति - अपना राज्य और समृद्धि  केवल अपने पुत्रों के लिए - केवल अपने वंश में ही रखना चाहता था।
वह अपने भाई के परिवार और पुत्रों की आवश्यकताओं से बेखबर - विरक्त और अंधा हो गया और पांडव पुत्रों को उनका योग्य हिस्सा देने से इंकार कर दिया।
धृतराष्ट्र राजा थे - वह चाहते तो कृष्ण के सुझाव पर केवल पांच गाँव पांडवों को देने का आदेश दे कर इस भयानक युद्ध को रोक सकते थे।  
लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। और न ही अपने पुत्रों को दुराचार करने से रोका। 
एक मूकदर्शक बन कर अपने पुत्रों के निर्मम क्रूर और अनुचित आचरण - उनके हर अन्यायपूर्ण व्यवहार को अनदेखा करते रहे। 
हालांकि वह राजा थे और राजा होने के नाते राज्य की सब शक्तियां उनके हाथ में थीं 
लेकिन फिर भी वह अपने पुत्रों के हाथ की कठपुतली बने रहे - उनके सामने असहाय और निर्बल  बने रहे। 
इस तरह पांडव पुत्रों को कुछ भी न देने का फैसला कर के धृतराष्ट्र ने उस  विवाद को और भड़का दिया और महाभारत के बीज बो दिए।  

इस महाकाव्य से जो सबसे बड़ा सबक सीखा जा सकता है, वह यह है कि परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव और विवाद - रिश्तों में आई हुई दरार अक़्सर गृहयुद्ध का कारण बन जाते हैं और समाज में फैला असंतोष महाभारत का रुप ले लेता है। 

यदि माता-पिता अपनी एक मनभावन प्रिय संतान को ही सारी सम्पत्ति देना चाहें - और बाकी बच्चों से अन्याय और बेइन्साफी करें तो परिवार में कलह और झगड़े को रोका नहीं जा सकता - परिवार के अन्य सदस्य असंतुष्ट हो कर विद्रोही बन जाते हैं।
और जब समाज के बड़े-बुजुर्ग लालची हो जाते हैं - अपनी संतान के प्रति अत्यधिक आसक्त हो जाते हैं  - 
जब नेता - शासक और अधिकारी गण सारा धन - सारी शक्ति एवं समृद्धि अपने ही परिवार में - अपने वंश में ही रखना चाहते हैं - तो  जाने अनजाने में अनिवार्य रुप से एक महाभारत की प्रक्रिया शुरु कर देते हैं। 
जब वे सभी योग्य उत्तराधिकारीयों की उपेक्षा करके अपना पद - अपनी शक्ति धन और सम्पत्ति इत्यादि सब कुछ अपनी संतान को हस्तांतरित कर देते हैं तो वे स्वयं भी समाज में अपना स्थान और विश्वसनीयता खो देते हैं।
अंततः अत्यधिक लोभ और पारिवारिक झगड़ों के कारण, महाराज धृतराष्ट्र के जैसे महान साम्राज्य भी धराशायी हो गए - मिट्टी में मिल गए ।
                                                     ' राजन सचदेव '

No comments:

Post a Comment

Who is Lord Krishn कौन और क्या हैं भगवान कृष्ण

Anupam Kher explains              Who or what is Lord Krishn   कौन और क्या हैं भगवान कृष्ण  -- अनुपम खैर  With English subtitles    ⬇️