Saturday, June 8, 2024

अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म -- कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है

        अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्
        न भुक्तं क्षीयते कर्म जन्म कोटि शतैरपि ।।
                                  शिव पुराण 23 -39 

हर अच्छे और बुरे कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। 
कोई भी कर्म अपना फल प्रदान किए बिना अनंत काल अथवा कोटि जन्मों तक भी नष्ट नहीं होता। 

अर्थात अच्छे अथवा बुरे - जैसे भी कर्म हम करेंगे - उनका फल हमें कभी न कभी भोगना ही पड़ेगा। 
प्रकृति के इस नियम से कोई भी नहीं बच सकता। 

जैसे धरती में बीज डाल दिया जाए तो कलांतर में वह प्रफुल्लित हो कर वृक्ष का रुप धारण कर लेता है -
और समुचित समय आने पर स्वयंमेव ही वृक्षों पर फल और फूल निकल आते हैं। 
उसी प्रकार - जीवन में किये हुए अच्छे और बुरे कर्म भी अपने आप ही - समय आने पर स्वतः ही अपना फल देने के लिए आते रहते हैं। 

आज तक कोई भी प्रकृति के इस नियम से बच नहीं पाया है। 
यहां तक कि गुरु पीर और अवतार भी कर्म के इस बंधन से मुक्त नहीं हो पाए। 
महानपुरुषों, गुरुओं, पीर-पैगम्बरों और अवतारों की जीवन गाथाओं को पढ़ने और देखने से पता चलता है कि वो भी कर्म के इस सिद्धांत से बच नहीं पाए। 

       कर्म गति टारे नहीं टरी 
       मुनि वसिष्ठ से ज्ञानी ध्यानी शोध के लगन धरी 
       भयो बनवास, मरण दसरथ को, बन में बिपति परी 
       सीता को हरि ले गयो  रावण सुवर्ण लंक जरी 
       कहत कबीर सुनो भई साधो होनी हो कै रही  
 
संत कबीर जी कहते हैं कि कर्म की गति टल नहीं सकती। 
ऋषि वशिष्ठ जैसे महान ज्ञानी ध्यानी मुनि ने सोच समझ कर भगवान राम के राज्य अभिषेक का मुहूर्त निकाला 
- लेकिन उसी मुहूर्त में भगवान राम को राजतिलक के स्थान पर बनवास मिल गया 
 इस दुःख के कारण ही पिता दशरथ की मृत्यु हो गई 
- भगवान राम को वन में कई विपत्तियों का सामना करना पड़ा 
- रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया। 
महान विद्वान ज्ञानी और पंडित होते हुए भी अपने कर्मों के कारण रावण का सर्वनाश हो गया और उसकी स्वर्ण-लंका भी जल कर राख  हो गई। 
कबीर जी महाराज फ़रमाते हैं कि होनी तो हो कर ही रहती है।  

अर्थात हर किसी को अपने कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है 
क्योंकि कोई भी कर्म अपना फल प्रदान किए बिना नष्ट नहीं होता। 
                       " राजन सचदेव "

नोट :
विभिन्न शास्त्रों में उपरोक्त श्लोक के कुछ विभिन्न रुप भी मिलते हैं :

कृतकर्मक्षयो नास्ति कल्पकोटिशतैरपि ।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ॥ ३९ ॥
              शिव पुराण 

ननुनाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्॥ 
          -- ब्रह्मवैवर्तपुराण १/४४/७४

यादृशं कुरुते कर्म तादृशं फलमाप्नुयात् ।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ।।
                        देवीभागवत ०६/०९/६७

11 comments:

  1. Koti koti naman aap ji ko karm ki paribasha itni saralta se samjane k liye ji🙏👣👣❤️

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  2. Just what I needed to experience!!! Thank you Gaurav

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  3. There are contradictory statements in the sculpture. We are led to believe that realization of God or the “ Gyan” Will relieve all the past sins ( like a spark of fire can burn a big pile of wood) and lead to Moksha or Nirvana. Gita also says : Lord Krishna in verse 66 of Chapter 18 says, "Offer all your responsibilities unto me. Surrender your complete self-unto only Me, the omnipotent, the omniscient, and the omnipresent. I will relieve you from all sinful results; do not be depressed."

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    1. Yes it will do but after getting Gyan we have surrender wholeheartedly to the karma as directed by Gyan be on Bhakti marg. Any deviation from this path will act as a deterrent because Arjun fully surrendered to the Krishna’s Gyan

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    2. Contradictions and confusion arise when we wrongly translate the Scriptures or hear misinterpretations of the verses. The Shlok you mentioned from the Bhagavad Geeta - "Just like a spark of fire can burn a big pile of wood - so the Fire of Gyana burns all the Karmas "
      If you read the actual verse from the Geeta, (Chapter 4, Shlok 37) - you will know that there is no mention of PAST Karmas - It does not say that your 'Past Karmas' will be burnt or destroyed.
      Please do read the previous and following verses of this Shloka also - to see in what context it was said.
      It's about the purity of Karmas after achieving the Gyan -
      Gyan changes the direction of your thoughts and actions - Gyan burns the (wrong) thoughts and actions just like a spark of fire burns the piles of wood - and makes you Pavitra - Pure.
      The next Shlok (#38) says - "There is nothing more purifying in this world than Gyan - By implementing the Gyan into Karma (action) - in due course of time one becomes pure and establishes oneself into Aatman - the real self."
      Nowhere it says that your past Karma will be burnt or destroyed.
      I hope this will help to remove some confusion.

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    3. Dr. Shiv kumar.
      Creation of this confusion

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  4. सब खेल है कर्मों का 👍🙏👌

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  5. Correct interpretation and understanding of any scripture is very important. 🙏🙏

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  6. It is informative as well as interesting, it is not so easy to understand what is the guiding force, Karma or anything that created tiny living dust in unknown universe.

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