Monday, June 20, 2022

ज्ञान की यथार्थता और उसका मूल्य

हमारा ज्ञान - हमारी जानकारी कितनी सही और मूल्यवान है -
इसका पता तब चलता है जब वह ज्ञान - वह जानकारी हमारे काम आती है।
जब वह फायदेमंद साबित होती है।
और जब भी हम इसका परीक्षण करते हैं - तो हर बार वह सही साबित होती है।

ज्ञान की वैधता का परीक्षण करने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि समान परिस्थितियों में सभी के लिए - 
हर जगह पर और हर बार - उसका परिणाम एक जैसा ही होना चाहिए। 
 
उदाहरण के लिए - हम जानते हैं कि यदि पानी को सौ डिग्री सेल्सियस के तापमान तक गर्म कर दिया जाए तो वह उबलने लगेगा।
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह परीक्षण कौन करता है - कब और कहाँ करता है। 
कोई भी -  कहीं भी और किसी भी समय यह परीक्षण करेगा तो परिणाम हमेशा वही होगा।
इस से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह जानकारी सत्य पर आधारित एक तथ्य है - महज विश्वास नहीं।

दूसरी ओर, एक ऐसा कथन - जो कभी-कभी तो सच हो सकता है - लेकिन हर बार नहीं - 
तो उसे तथ्यात्मक जानकारी अथवा सही ज्ञान नहीं माना जा सकता।

यदि अप्रमाणित बातें और अंध विश्वास हमारी सोच - हमारी भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करती हैं 
तो इस का सीधा सा मतलब है कि हम धर्मभीरु हैं  - भयातुर और कमजोर हैं। 
हमें डर है कि अगर हम किसी विशेष कथन में विश्वास नहीं करते, तो हमारे साथ कुछ बुरा हो सकता है
- कोई बुरी घटना घट सकती है - कुछ गलत हो सकता है।

अनर्थक और अप्रमाणित बातों पर कोई कितना भी ज़ोर क्यों न डाले - उनकी महत्ता का ब्यान करे  - 
उन्हें हाईलाइट करके भावनात्मक रुप से प्रभाव डाल कर हमें डराने की कोशिश करे  -
तो ध्यान रहे - कि अंत में, उन सभी ऐसी मान्यताओं का कोई मूल्य नहीं है जिनका न तो परीक्षण किया जा सके - 
जिन्हें परखा न जा सके और जिनका परिणाम हर बार - हर जगह - हर व्यक्ति के साथ एक जैसा न हो। 

भगवान कृष्ण, भगवान बुद्ध और बाबा अवतार सिंह जी ने बार बार ये बात कही कि ज्ञानी को हमेशा सतर्क और सावधान रहना चाहिए -
हमेशा जाग्रत, और सचेत  रहना चाहिए।
हर ज्ञानी व्यक्ति को प्रभु की दी हुई बुद्धि द्वारा सोच-विचार कर के सत्य और असत्य के बीच के अंतर को ठीक से समझ लेना चाहिए। 
ये अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि सच क्या है और झूठ क्या है - 
सही और ग़लत की परख कर के - उसके अनुसार उपयुक्त कार्य करना ही मनुष्य का धर्म है । 
                                                                   ' राजन सचदेव '

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