जीवन का मार्ग हमेशा फूलों से सजी एक सीधी पक्की सड़क की तरह नहीं होता।
कभी यह एक ऊबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते की तरह भी हो सकता है
इसमें बहुत सारे उतार-चढ़ाव भी हो सकते हैं।
कभी तो हमारा जीवन सुचारु रुप से चलता रहता है
और कभी रास्ते में कुछ टोए-टिब्बे और स्पीड-ब्रेकर भी मिल जाते हैं
कभी कुछ झटकों और रुकावटों का सामना भी करना पड़ जाता है
जीवन में आने वाले हर मोड़ और खतरे की पूर्व-जानकारी होना सम्भव नहीं हो सकता।
कभी रास्ता चलते हुए दुर्घटना भी हो सकती है - चोट भी लग सकती है।
कहते हैं कि अक़्सर चोट खा कर ही इंसान सम्भलता है।
कुछ नया सीखने के लिए पुराना भूलना पड़ता है
सफलता के लिए पहले कई बार असफल भी होना पड़ता है।
अक़्सर दुःख का अनुभव होने के बाद ही सुख की कीमत का पता चलता है।
कई बार तो आंसुओं से आँखें धुल जाने के बाद ही सत्य का ज्ञान होता है।
लेकिन एक बात तो निश्चित है कि दशा कैसी भी हो - हालात कैसे भी हों -
जीवन रुकता नहीं - चलता रहता है।
आगे बढ़ता रहता है -
यह न रुकता है और न कभी पीछे मुड़ता है।
यहां तक कि मृत्यु भी जीवन का अंतिम पड़ाव नहीं है।
सभी धर्म इस जीवन के बाद भी एक और जीवन में विश्वास रखते हैं।
चाहे वह नया जीवन इस धरती पर हो या स्वर्ग अथवा नर्क के रुप में।
अधिकांश लोग ऐसा मानते हैं कि मृत्यु के बाद या तो इस धरती पर पुनर्जन्म होगा
या फिर इंसान की रुह अनंत काल तक जन्नत में या जहन्नुम में - स्वर्ग अथवा नर्क में रह कर अपने कर्मों का फल भोगेगी।
अर्थात मृत्यु जीवन का अंत नहीं है।
इसलिए कभी प्रयास नहीं छोड़ना चाहिए।
लक्ष्य तक पहुँचने के प्रयास को छोड़ देना ही लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक होगा -
कोशिश न करना ही बाधा बन जाएगा ।
अगर हम आशा और साहस के साथ आगे बढ़ते रहें, तो हम सभी बाधाओं और मुश्किलों को दूर कर सकते हैं
और अपने आगे का रास्ता साफ कर सकते हैं।
अगर मंजिल तक पहुंचने के लिए थोड़ा सा मोड़ भी लेना पड़े तो ले सकते हैं -
लेकिन ये ध्यान रहे कि कहीं अपने ध्येय - अपने गोल को न भूल जाएं -
कहीं विचलित हो कर रुक न जाएं और मंज़िल को न भूल जाएं।
बाईबल कहती है:
" ढूंढोगे तो मिल जाएगा -
खटखटाओगे तो तुम्हारे लिये द्वार खुल जाएगा "
(बाइबल - मैथ्यू 7:7)
"अगाहाँ कू ही तरांघ - पिछे फेर न मोढ़ड़ा "।
(आगे बढ़ते रहो - पीछे मत मुड़ो)
(गुरबाणी)
भगवद गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं:
अपनी समझ और क्षमता के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करते रहो।
सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय को समान मानकर अपने दायित्वों का निर्वाह करते रहने से तुम्हें कोई पाप नहीं होगा।
(भगवद गीता 2:38)
अपने लक्ष्य पर दृष्टि रखें - अपनी मंज़िल पर नज़र रखें।
शुद्ध और सच्चे इरादों के साथ आगे बढ़ते रहना ही मंजिल तक पहुँचने की कुंजी है।
' राजन सचदेव '
Beautiful🙏
ReplyDelete🙏Bahoot hee khoobsurat advice ji. 🙏
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