ब्रह्मांड - ईश्वर अथवा प्रकृति को कोई जल्दी नहीं है।
लेकिन - हम हमेशा जल्दी में होते हैं।
हम हर चीज़ जल्दी - बल्कि तुरंत ही चाहते हैं।
हम चाहते हैं कि हम जो कुछ भी मांगें वो उसी वक़्त हमें मिल जाए।
हम जैसा चाहें फ़ौरन ही वैसा हो जाए।
लेकिन अक़्सर ऐसा नहीं होता।
इसी लिए हम अक़्सर थके हुए - उदास, चिंतित, तनावग्रस्त - अथवा खिन्न एवं अवसादग्रस्त भी रहते हैं।
ज़रुरत इस बात की है कि हमें हमें ये विश्वास रहे कि जो हमारा है - जो हमें मिलना है वो समय आने पर हमें मिल ही जाएगा।
ब्रह्मांड को - प्रकृति को समय दें।
समाधान और रास्ता स्वयं ही निकल आएगा - स्वयं ही प्रकट हो जाएगा।
जैसा कि सद्गुरु कबीर जी ने कहा है :
' धीरे धीरे रे मना - धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घड़ा रितु आए फल होय '
अर्थात सब कुछ धीरे-धीरे - अपने नियत समय में ही होता है।
हम एक ही दिन में अगर एक पौधे को सौ बाल्टी पानी दे दें तो उस पर अगले दिन ही फूल और फल नहीं आ जाएंगे।
वह अपने उचित समय और मौसम में - रितु आने पर ही खिलेगा - उससे पहले नहीं।
भापा भगत राम जी बरनाला वाले अक़्सर कहा करते थे कि
' जेहड़ा कम्म एह करना लोड़े
सौ सबब इक घड़ी में जोड़े '
अर्थात जो होना ही है - उसके सबब - उसके विकल्प और साधन स्वयं ही बन जाते हैं।
इसलिए उदास और चिंताग्रस्त रहने की बजाए मन में विश्वास और धीरज रखो
और आशावादी बने रहो।
" राजन सचदेव "
Jai Gurdev
ReplyDeleteSatya vachan
ReplyDelete-Priyal
Beautiful 👌🙏🏿🙏🏿🙏🏿
ReplyDeleteBhut he sunder bachan ji.🙏
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