Saturday, May 28, 2022

पर उपदेश कुशल बहुतेरे । आचरहिं ते नर न घनेरे

                           पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
                             आचरहिं ते नर न घनेरे 
                                                    " गोस्वामी तुलसीदास "

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि दूसरों को उपदेश देने वाले तो बहुत हैं 
लेकिन स्वयं आचरण करने वाले अधिक नहीं हैं 
अर्थात ऐसे लोग बहुत कम हैं जो अपनी ही कही हुई बातों पर स्वयं भी आचरण करते हों। 

अक़्सर देखने में यही आता है कि उपदेशक लोग जो दूसरों को करने के लिए कहते हैं वह ख़ुद नहीं करते। 
क्योंकि कह देना तो बहुत आसान होता है - कोई भी कह सकता है। 
ख़ास तौर पर एक अच्छा वक्ता जिसमें आत्म-विश्वास हो - जिसे पब्लिक में बोलने का अभ्यास हो - 
जो सुन्दर शब्दों का चयन करके प्रभावशाली भाषा का प्रयोग कर सकता हो - 
उसके लिए किसी भी विषय पर बोलना मुश्किल नहीं होता। 
वह कुछ मिनटों में ही अपने भाषण से लोगों को प्रभावित कर सकता है।

एक सेमीनार में एक प्रसिद्ध प्रवक्ता - एक मोटिवेशनल स्पीकर (Motivational speaker) ने  
" चाय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है - चाय पीने के नुक्सान " 
के टॉपिक को लेकर एक घंटे तक ज़ोरदार भाषण दिया। 
भाषण के बाद वह स्टेज से नीचे उतर कर आए और एक प्रबंधक को बुला कर बोले -
" जल्दी से मेरे कमरे में एक कप गर्म गर्म चाय भिजवा दो - 
बहुत थक गया हूँ - अभी एक और जगह पर भी लेक्चर देने जाना है। "

प्रबंधक ने कहा -
"लेकिन अभी तो आपने इतने ज़ोरदार शब्दों में सब को चाय पीने से मना किया है - 
    चाय पीने के नुक्सान बताए हैं और अब आप स्वयं .........." 

प्रवक्ता ने हँसते हुए कहा -- 
"अरे भई - वो तो मुझे इस विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। 
मुझे जिस टॉपिक पर बोलने के लिए कहा गया - मैंने बोल दिया। 
लेकिन इसका ये मतलब थोड़े ही है कि मैं ख़ुद भी चाय पीना छोड़ दूँ?"
                                 ~~~~~~~~
कह देना - दूसरों को उपदेश देना और भाषण देना कठिन नहीं होता 
लेकिन स्वयं उन उपदेशों पर अमल करना कठिन होता है। 
इसीलिए वर्तमान समय में उपदेशक तो बहुत हैं 
लेकिन अमल करने वाले कम ही मिलते हैं।
तुलसी दास जी ने सच ही कहा था कि -
  "पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
   आचरहिं ते नर न घनेरे "
                                " राजन सचदेव " 

1 comment:

Easy to Criticize —Hard to Tolerate

It seems some people are constantly looking for faults in others—especially in a person or a specific group of people—and take immense pleas...