एक सम्मेलन में पुरानी और नई पीढ़ियों के बीच के अंतर पर हो रही चर्चा के दौरान - एक चालाक और अभिमानी किस्म के नौजवान ने एक बड़ी उम्र के प्रवक्ता को यह समझाना चाहा कि पुरानी पीढ़ी के लिए नई पीढ़ी को समझना असम्भव है।
उसने ऊँची और अहंकार भरी आवाज़ में यह बात इतनी ज़ोर से कही कि वहां बैठे सब लोग सुन सकें -
"आप एक अलग दुनिया में पले-बढ़े हैं - बाबा आदम के ज़माने के।
आज के युवा लोग टेलीविजन, इंटरनेट, और सेल-फोन के साथ बड़े हुए हैं।
हमारे पास इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन कारें हैं - जेट विमान और परमाणु ऊर्जा वाले जहाज हैं -
लाइट की स्पीड से चलने वाले कंप्यूटर, और ऐसी कई और चीजें हैं।
हमारे अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह का दौरा कर चुके हैं।
जब आप बच्चे थे - जवान थे - तो क्या आपके पास इनमें से कुछ भी था?"
वृद्ध प्रवक्ता ने बड़े शांत स्वर में उत्तर दिया:
"तुम सही कह रहे हो बेटा -
जब हम छोटे थे - जवान थे तो हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं था.....
इसी लिए तो हमने इन सभी चीजों का आविष्कार किया था !
लेकिन अब तुम ये बताओ कि जिन चीजों का हमने आविष्कार किया..
तुम उन सबका आनंद तो ले रहे हो लेकिन तुम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए क्या कर रहे हो?"
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मैंने उपरोक्त कहानी कहीं पढ़ी और सोचा कि यह बात तो जीवन के हर क्षेत्र में सच है।
न केवल नई तकनीकों और गैजेट्स या सुविधा के लिए उपकरणों का आविष्कार करने में -
बल्कि यह बात सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक या आध्यात्मिक संगठनों के आगुओं और नेताओं पर भी लागू होती है।
पुरानी पीढ़ियों ने जिन सिद्धांतों और विचारधाराओं को गहराई से सोचने और शोध करने में वर्षों तक कड़ी मेहनत की - उन्हें विकसित किया और फिर जिस निष्कर्ष पर पहुंचे - वह साहित्य और शास्त्रों के रुप में लिख दिया।
वह अपने जीवन भर के अनुभव शास्त्रों और ग्रंथों के रुप में हमारे लिए - अर्थात नई पीढ़ी के लिए छोड़ गए।
उन्होंने रास्ता खोजा और न केवल हमारे लिए इसे प्रशस्त किया - बल्कि कुछ दिशाऔर निर्देश भी लिख दिए ताकि हम बिना किसी बाधा के गंतव्य तक पहुंच सकें।
हम अक्सर उनकी उपलब्धियों की चर्चा करते हैं और कभी-कभी उनकी त्रुटियों के बारे में भी बात करते हैं।
कुछ लोग उनकी अवधारणाओं को श्रद्धा के साथ मानते हैं।
और कुछ लोग उनकी धारणाओं - और उनकी वैधता एवं निष्ठा पर भी सवाल उठाते हैं।
यहाँ तक कि कुछ लोग उनका मजाक भी उड़ाते हैं।
लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पुरानी पीढ़ी के लोगों ने - जो वे कर सकते थे - वह किया -
वो अपने कार्य - अपनी खोज और आविष्कार हमारे लिए छोड़ गए ताकि हम उनका आनंद भी ले सकें और उन्हें आगे बढ़ा सकें ।
उनकी खोज का फायदा उठा कर - जहां पर उन्होंने छोड़ा, वहां से और आगे बढ़ा सकें और हर चीज़ को पहले से बेहतर बना सकें।
अब सवाल यह है कि हम क्या कर रहे हैं?
हम अपने लिए और आने वाली पीढ़ी के लिए क्या कर रहे हैं ?
' राजन सचदेव '
Very thought provoking and well written. A good question for the new generation to ask themselves.
ReplyDelete-Priyal
This is very True. I think mid generation (between old and young generation) do realize that they were wrong about criticizing their older generation as they are not being criticized by their young generation.🙏🙏
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