Thursday, May 12, 2022

दो शायर दो ग़ज़लें एक ख़्याल -- कहाँ जाते ?

तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
जो वाबस्ता हुए तुम से वो अफ़्साने कहाँ जाते

निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मय-ख़ाना
तो ठुकराए हुए बंदे ख़ुदा जाने कहाँ जाते

तुम्हारी बे-रुख़ी ने लाज रख ली बादा-ख़ाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते

चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वगर्ना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते

'क़तील' अपना मुक़द्दर ग़म से बेगाना अगर होता
तो फिर अपने पराए हम से पहचाने कहाँ जाते
                                           " क़तील शिफ़ाई "
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न मिलता ग़म तो बर्बादी के अफ़्साने कहाँ जाते
अगर दुनिया चमन होती तो वीराने कहाँ जाते

तुम्हीं ने ग़म की दौलत दी बड़ा एहसान फ़रमाया
ज़माने भर के आगे हाथ फैलाने कहाँ जाते

दुआएँ दो मोहब्बत हम ने मिट कर तुम को सिखला दी
न जलती शम्मा महफ़िल में तो परवाने कहाँ जाते

चलो अच्छा हुआ अपनों में कोई ग़ैर तो निकला
अगर होते सभी अपने तो बेगाने कहाँ जाते
                                   || शकील बदायूनी ||
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अंजुमन       =  महफ़िल, सभा 
वाबस्ता        =  जुड़े हुए, संबंधित 
दैर-ओ-काबा   = मंदिर-मस्जिद  - धर्म स्थान 
बादा-ख़ाना      =   शराबख़ाना - Bar, Pub 

3 comments:

  1. Beautiful ghazals. I have heard Chitra Singh sing the first. Ofcourse Lata the second.

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  2. Bahot khoob ji.🙏

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  3. Very nice.
    -Ravi

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न जाने कौन सी बात आख़िरी होगी  न जाने कौन सी रात आख़िरी होगी  मिलते जुलते बात करते रहा करो यारो  न जाने कौन सी मुलाक़ात आख़िरी होगी             ...