तीन पहर तो बीत गये
बस एक पहर ही बाकी है
जीवन हाथों से फिसल गया
बस खाली मुट्ठी बाकी है
सब कुछ पाया जीवन में,
फिर भी इच्छाएं बाकी हैं
दुनिया से हमने क्या पाया,
यह लेखा - जोखा बहुत हुआ
इस जग ने हमसे क्या पाया
बस ये गणनाएं बाकी हैं
इस भाग-दौड़ की दुनिया में
हमको इक पल का होश नहीं
वैसे तो जीवन सुखमय है
पर फिर भी क्यों संतोष नहीं
क्या यूं ही जीवन बीतेगा
क्या यूं ही सांसें बंद होंगी ?
औरों की पीड़ा देख समझ
कब अपनी आंखें नम होंगी ?
मन के अंतर में कहीं छिपे
इस प्रश्न का उत्तर बाकी है।
मेरी खुशियां - मेरे सपने
मेरे बच्चे - मेरे अपने.....
यह करते - करते शाम हुई
इससे पहले - तम छा जाए
इससे पहले कि शाम ढले
कुछ दूर परायी बस्ती में
इक दीप जलाना बाकी है।
तीन पहर तो बीत गये,
बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया
बस खाली मुट्ठी बाकी है।
(लेखक अज्ञात )
प्रेषक : डॉक्टर ज्योति कालरा (शिकागो)
Very true
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteToo good
ReplyDelete🙏
ReplyDeletekya baat hai ji...
ReplyDelete__/|__ dnji...
Bhaut khoob 🙏🏿
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDelete-Ravi
Awesome
ReplyDeleteKamal ki haqeqat bayan ki hai huzoor 🙏
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