Tuesday, May 31, 2022

जीवन एक सीधी सपाट सड़क नहीं है

जीवन का मार्ग हमेशा फूलों से सजी एक सीधी पक्की सड़क की तरह नहीं होता। 
कभी यह एक ऊबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते की तरह भी हो सकता है  
इसमें बहुत सारे उतार-चढ़ाव भी हो सकते हैं।

कभी तो हमारा जीवन सुचारु रुप से चलता रहता है 
और कभी रास्ते में कुछ टोए-टिब्बे और स्पीड-ब्रेकर भी मिल जाते हैं 
कभी कुछ झटकों और रुकावटों का सामना भी करना पड़ जाता है 
जीवन में आने वाले हर मोड़ और खतरे की पूर्व-जानकारी होना सम्भव नहीं हो सकता। 
कभी रास्ता चलते हुए दुर्घटना भी हो सकती है - चोट भी लग सकती है। 

कहते हैं कि अक़्सर चोट खा कर ही इंसान सम्भलता है। 
कुछ नया सीखने के लिए पुराना भूलना पड़ता है 
सफलता के लिए पहले कई बार असफल भी होना पड़ता है।
अक़्सर दुःख का अनुभव होने के बाद ही सुख की कीमत का पता चलता है। 
कई बार तो आंसुओं से आँखें धुल जाने के बाद ही सत्य का ज्ञान होता है। 

लेकिन एक बात तो निश्चित है कि दशा कैसी भी हो -  हालात कैसे भी हों  - 
जीवन रुकता नहीं - चलता रहता है। 
आगे बढ़ता रहता है - 
यह न रुकता है और न कभी पीछे मुड़ता है।

यहां तक कि मृत्यु भी जीवन का अंतिम पड़ाव नहीं है।
सभी धर्म इस जीवन के बाद भी एक और जीवन में विश्वास रखते हैं।
चाहे वह नया जीवन इस धरती पर हो या स्वर्ग अथवा नर्क के रुप में।  
अधिकांश लोग ऐसा मानते हैं कि मृत्यु के बाद या तो इस धरती पर पुनर्जन्म होगा
या फिर इंसान की रुह अनंत काल तक जन्नत में या जहन्नुम में - स्वर्ग अथवा नर्क में रह कर अपने कर्मों का फल भोगेगी।  
अर्थात मृत्यु जीवन का अंत नहीं है। 

इसलिए कभी प्रयास नहीं छोड़ना चाहिए। 
लक्ष्य तक पहुँचने के प्रयास को छोड़ देना ही लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक होगा - 
कोशिश न करना ही बाधा बन जाएगा ।
अगर हम आशा और साहस के साथ आगे बढ़ते रहें, तो हम सभी बाधाओं और मुश्किलों को दूर कर सकते हैं 
और अपने आगे का रास्ता साफ कर सकते हैं।
अगर मंजिल तक पहुंचने के लिए थोड़ा सा मोड़ भी लेना पड़े तो ले सकते हैं  - 
लेकिन ये ध्यान रहे कि कहीं अपने ध्येय  - अपने गोल को न भूल जाएं - 
कहीं विचलित हो कर रुक न जाएं  और मंज़िल को न भूल जाएं।  
बाईबल कहती है:
    " ढूंढोगे तो मिल जाएगा  -
खटखटाओगे तो तुम्हारे लिये द्वार खुल जाएगा "
                                      (बाइबल - मैथ्यू 7:7)
"अगाहाँ कू ही तरांघ - पिछे फेर न मोढ़ड़ा "।
                   (आगे बढ़ते रहो - पीछे मत मुड़ो)
                                                   (गुरबाणी)
भगवद गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं:
अपनी समझ और क्षमता के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करते रहो। 
सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय को समान मानकर अपने दायित्वों का निर्वाह करते रहने से तुम्हें कोई पाप नहीं होगा। 
                            (भगवद गीता 2:38)

अपने लक्ष्य पर दृष्टि रखें - अपनी मंज़िल पर नज़र रखें। 
शुद्ध और सच्चे इरादों के साथ आगे बढ़ते रहना ही मंजिल तक पहुँचने की कुंजी है।
                     ' राजन सचदेव '

Jeena isi ka naam hai जीना इसी का नाम है

          Jeena isi ka naam hai



  
Please click on the link and watch the video 


Life is not always a straight journey

Life is not always a straight journey on a smooth paved road covered with a red carpet or flowers. 
Sometimes it’s a bumpy road with lots of ups and downs. 
Sometimes it may move smoothly, 
and sometimes we may hit a few bumps and speed-breakers. 
Every turn and diversion along the way is not always predictable.

Sometimes we must get hurt in order to grow. 
Sometimes we must unlearn in order to know.
Sometimes we must fail in order to achieve.
And yet - sometimes the vision may clear after the eyes are washed away with tears.
But nevertheless, life always keeps moving forward. 
It neither stops nor moves backward. 

Even death is not the final stop either. 
All religions (and most people) believe in an afterlife, either on this earth or in heaven. 

Giving up the effort to reach the goal would be the deterrent - a barrier. 
If we keep moving forward with hope and courage, we can remove all hurdles and obstacles and clear the path ahead of us. 
We could even take a slight diversion to reach the destination - 
as long as we do not get distracted and lose the vision. 
      "Seek, and ye shall find"
"Knock, and the door shall be opened unto you" 
                                             (Bible - Mathew 7:7)      
"Agaahan koo hi trangh- pichhe pher na modhada".   
 (Keep moving forward - Do not turn backward)
                                                   (Gurbani) 
As Lord Krishna says:
Perform your duties to the best of your knowledge and abilities. 
Fulfilling your responsibilities by treating happiness and distress, loss and gain, victory and defeat alike - you will never incur sin.
                            (Bhagavad Geeta 2:38)
Keeping an eye on the goal -
and keep moving forward with pure and sincere intentions is the key to reaching the destination.
                     ‘Rajan Sachdeva’ 

No matter how good you are आप चाहे कितने भी अच्छे हों

No matter how good a person you are, 
you might be malicious and evil in someone's eyes.
Everyone looks at you and judges you - 
Not from what you are -
But from their own perception. 
                       
आप चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों -
किसी न किसी की नजर में तो बुरे ही रहेंगे। 
क्योंकि हर व्यक्ति आपको अपने नज़रिये से ही देखता है । 

Monday, May 30, 2022

प्रीतम छबि नैनन बसी

                   प्रीतम छबि नैनन बसी, पर-छबि कहां समाय।
                  भरी सराय ‘रहीम’ लखि, पथिक आप फिर जाय॥

                                                     ~  अब्दुल रहीम  खानखाना  ~ 

शब्दार्थ : 
जिन आँखों में प्रियतम की सुन्दर छवि बसी हो -
वहां किसी दूसरी छवि को कैसे जगह मिल सकती है? 
भरी हुई सराय को देखकर पथिक स्वयं ही वहां से लौट जाता है। 

भावार्थ :
जिसने अपने मन-मन्दिर में प्रभु को पूरी तरह बसा लिया
वहां से मोहिनी माया अपने रहने की जगह न पाकर उल्टे पांव लौट जाती है।

अर्थात जिस के मन में प्रभु बसे हैं - 
जिस का मन प्रभु प्रेम से भरा है - 
उस के मन में तो संसार की मोह-माया के लिए कोई जगह ही नहीं बचती। 

Eyes filled with beloved's image - Preetam chhabi nainan basi

               Preetam chhabi nainan basi, Par chhabi kahaan samaaye
                Bharee Saraaye 'Raheem' lakhi,  Pathik aapu phir jaaye 
                                                                                               (Abdul Raheem)

Literal Meaning:
In the eyes - where the beautiful image of the beloved resides - 
      (if the eyes are filled with the beloved's image) 
How can any other image settle in there?
Seeing the inn occupied - totally filled, 
The visitor goes away on its own (without being asked to leave).

Contextual meaning - 
The one who has filled the temple of his heart with the love of the Almighty Lord -
Whose mind is totally absorbed in the Lord's love and devotion,
The Maya - not being able to find any place for itself - goes away from there on its own - 
without any effort from the Bhakta.

Sunday, May 29, 2022

If all this is illusion- Then what is Truth? To Satya kya hai?

Main jo kucch dekhtaa hoon
Suntaa hoon - Chhootaa hoon
Mehsoos kartaa hoon 

Ye sub agar 'Mithyaa' hai 
To Satya kya hai?

Teri aankhen -Teray abroo
Teray aariz - Teray lub
Teri muskaan - Teri lachak

Ye sub agar 'Mithyaa' hai 
To phir Satya kya hai ?

Jis din man us Satya ko paa lega 
To sadiyon ka sanjoyaa 
ye sapnaa toot jayega 
Moh chhoot jayega 
Bandhan toot jayega 

Aur ......
Man shaant, nishchal, nish-kratya ho jayega 
Satya ko paa kar - Satya me kho jayega 
Antatah Satya hi ho jayega           
                          By: Doctor Jagdish Sachdeva
                                 (Michigan, USA)

                    Translation
All that I see -  
Whatever I hear, touch, and feel - 
        if all this is an illusion 
        what is the Reality then?

Your eyes, your eyebrows, 
your cheeks, your lips, 
your smile, your tenderness -
         If all this is an illusion
         then what is the Truth?

The day the mind will find that ultimate Truth -
this dream -
that has been cherished for centuries, 
will be shattered, 
the attachment will be released, 
and the bond will be broken.

You will become peaceful 
calm, and stable 
will merge in the truth - 
After discovering the truth, 
you will eventually become the truth itself.

Abroo                 Eyebrows
Aariz                  Cheeks
Lub                     Lips
Shaant                Peaceful
Nishchal             Still, Stable
Nish-Kratya      Inactive, Idle, Dormant, inert 
Antatah              Finally, eventually

ये अगर मिथ्या है तो सत्य क्या है ?

मैं जो कुछ देखता हूँ
सुनता हूँ  - छूता हूँ 
महसूस करता हूँ 
ये सब अगर मिथ्या है 
तो सत्य क्या है ?

तेरी आँखें - तेरे अबरु 
तेरे आरिज़  - तेरे लब 
तेरी मुस्कान  - तेरी लचक 
यह सब अगर मिथ्या है
तो फिर सत्य क्या है ?

जिस दिन मन उस सत्य को पा लेगा 
तो  सदियों से सँजोया 
ये सपना टूट जाएगा 
मोह छूट जाएगा  
बंधन टूट जाएगा 

तब मन  ......
 शांत, निष्चल - निष्कृत्य हो जाएगा 
 सत्य को पाकर सत्य में खो जाएगा 
 अंततः सत्य ही हो जाएगा 
                                   "डॉक्टर जगदीश सचदेवा "
                                              मिशिगन - यू. एस. ए. 

अबरु          =  भंवें  Eyebrows 
आरिज़        =  गाल    Cheeks 
 लब           =  होंठ     Lips

एक मैं ही समझदार हूँ I am the only one wise and thoughtful

एक मैं ही समझदार हूँ बाकी सब नादान 
इसी वहम में घूम रहा है देखो हर इंसान 

Ek main hee samajh-daar hoon baaki sub nadaan 
Isi veham me ghoom rahaa hai dekho har insaan 
                                               (Writer unknown)

                          Translation
I am the only one wise and thoughtful - 
All others are naive and ignorant. 
In this delusion, everyone is roaming around.

Saturday, May 28, 2022

Par-updesh kushal bahuteray - It's Easier to Preach than Act

                              Par-Updesh Kushal Bahuteray
                             Acharahin Tay Nar Na Ghaneray
                                                    "Goswami Tulsidas"

Goswami Tulsidas ji says that there are so many who preach to others.
But those who practice what they say are not many.
In other words - there are very few such people who practice and act as they preach to others.
                       ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
It is often seen that what preachers tell others to do, they do not do themselves.
Because it's easier said than done. 
It is easy to say and give lectures - anyone can do it.

Especially a good speaker who has self-confidence and has a practice of speaking in public - 
who can use adequate and elegant language by choosing beautiful, appropriate words - 
can easily give a talk on any given topic efficiently. 
Such people can impress the audience with their speech in a matter of minutes. 
It's not hard for them.

A famous motivational speaker was speaking in a seminar. 
The topic was -
"Tea is injurious to health - Disadvantages of drinking tea."

He gave an impressive speech for an hour on the topic - very elegantly and enthusiastically.

After the speech, he came down from the stage and called one of the hosts and said -
"Quickly send a cup of hot tea to my room, please.
I am so tired - and I have to go to another place to give another lecture now.

The host said - 
"But Sir - just a few minutes ago - you convinced and forbade everyone from drinking tea with such strong words. 
You just showed us the disadvantages of drinking tea - and now you.........."

The motivational speaker laughed and said -
"my dear - I was simply invited here to speak on this subject.
 I spoke on the topic on which I was asked to speak.
But does that mean that I should also stop drinking tea myself?"
                                         ~~~~~~
It is not difficult to preach and give lectures to others.
But it is difficult to accept - to believe and implement those teachings themselves. 
That is why there are so many preachers these days -
But those who follow are rarely found.

Tulsi Das ji had rightly said that -
         "Par-Updesh Kushal Bahuteray
           Acharahin Tay Nar Na Ghaneray"
                                                ' Rajan Sachdeva '

पर उपदेश कुशल बहुतेरे । आचरहिं ते नर न घनेरे

                           पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
                             आचरहिं ते नर न घनेरे 
                                                    " गोस्वामी तुलसीदास "

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि दूसरों को उपदेश देने वाले तो बहुत हैं 
लेकिन स्वयं आचरण करने वाले अधिक नहीं हैं 
अर्थात ऐसे लोग बहुत कम हैं जो अपनी ही कही हुई बातों पर स्वयं भी आचरण करते हों। 

अक़्सर देखने में यही आता है कि उपदेशक लोग जो दूसरों को करने के लिए कहते हैं वह ख़ुद नहीं करते। 
क्योंकि कह देना तो बहुत आसान होता है - कोई भी कह सकता है। 
ख़ास तौर पर एक अच्छा वक्ता जिसमें आत्म-विश्वास हो - जिसे पब्लिक में बोलने का अभ्यास हो - 
जो सुन्दर शब्दों का चयन करके प्रभावशाली भाषा का प्रयोग कर सकता हो - 
उसके लिए किसी भी विषय पर बोलना मुश्किल नहीं होता। 
वह कुछ मिनटों में ही अपने भाषण से लोगों को प्रभावित कर सकता है।

एक सेमीनार में एक प्रसिद्ध प्रवक्ता - एक मोटिवेशनल स्पीकर (Motivational speaker) ने  
" चाय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है - चाय पीने के नुक्सान " 
के टॉपिक को लेकर एक घंटे तक ज़ोरदार भाषण दिया। 
भाषण के बाद वह स्टेज से नीचे उतर कर आए और एक प्रबंधक को बुला कर बोले -
" जल्दी से मेरे कमरे में एक कप गर्म गर्म चाय भिजवा दो - 
बहुत थक गया हूँ - अभी एक और जगह पर भी लेक्चर देने जाना है। "

प्रबंधक ने कहा -
"लेकिन अभी तो आपने इतने ज़ोरदार शब्दों में सब को चाय पीने से मना किया है - 
    चाय पीने के नुक्सान बताए हैं और अब आप स्वयं .........." 

प्रवक्ता ने हँसते हुए कहा -- 
"अरे भई - वो तो मुझे इस विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। 
मुझे जिस टॉपिक पर बोलने के लिए कहा गया - मैंने बोल दिया। 
लेकिन इसका ये मतलब थोड़े ही है कि मैं ख़ुद भी चाय पीना छोड़ दूँ?"
                                 ~~~~~~~~
कह देना - दूसरों को उपदेश देना और भाषण देना कठिन नहीं होता 
लेकिन स्वयं उन उपदेशों पर अमल करना कठिन होता है। 
इसीलिए वर्तमान समय में उपदेशक तो बहुत हैं 
लेकिन अमल करने वाले कम ही मिलते हैं।
तुलसी दास जी ने सच ही कहा था कि -
  "पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
   आचरहिं ते नर न घनेरे "
                                " राजन सचदेव " 

Friday, May 27, 2022

पुरानी और नई पीढ़ी

एक सम्मेलन में पुरानी और नई पीढ़ियों के बीच के अंतर पर हो रही चर्चा के दौरान - एक चालाक और अभिमानी किस्म के नौजवान ने एक बड़ी उम्र के प्रवक्ता को यह समझाना चाहा कि पुरानी पीढ़ी के लिए नई पीढ़ी को समझना असम्भव है।

उसने ऊँची और अहंकार भरी आवाज़ में यह बात इतनी ज़ोर से कही कि वहां बैठे सब लोग सुन सकें - 
"आप एक अलग दुनिया में पले-बढ़े हैं  - बाबा आदम के ज़माने के। 
आज के युवा लोग टेलीविजन, इंटरनेट, और सेल-फोन के साथ बड़े हुए हैं।
हमारे पास इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन कारें हैं - जेट विमान और परमाणु ऊर्जा वाले जहाज हैं  - 
लाइट की स्पीड से चलने वाले कंप्यूटर, और ऐसी कई और चीजें हैं।
हमारे अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह का दौरा कर चुके हैं।
जब आप बच्चे थे - जवान थे - तो क्या आपके पास इनमें से कुछ भी था?"

वृद्ध प्रवक्ता ने बड़े शांत स्वर में उत्तर दिया:
"तुम सही कह रहे हो बेटा  - 
जब हम छोटे थे - जवान थे तो हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं था.....
इसी लिए तो हमने इन सभी चीजों का आविष्कार किया था !

लेकिन अब तुम ये बताओ कि जिन चीजों का हमने आविष्कार किया.. 
तुम उन सबका आनंद तो ले रहे हो लेकिन तुम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए क्या कर रहे हो?"
                              ~~~~~~~                                          
मैंने उपरोक्त कहानी कहीं पढ़ी और सोचा कि यह बात तो जीवन के हर क्षेत्र में सच है।
न केवल नई तकनीकों और गैजेट्स या सुविधा के लिए उपकरणों का आविष्कार करने में - 
बल्कि यह बात सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक या आध्यात्मिक संगठनों के आगुओं और नेताओं पर भी लागू होती है।

पुरानी पीढ़ियों ने जिन सिद्धांतों और विचारधाराओं को गहराई से सोचने और  शोध करने में वर्षों तक कड़ी मेहनत की - उन्हें विकसित किया और फिर जिस निष्कर्ष पर पहुंचे - वह साहित्य और शास्त्रों के रुप में लिख दिया। 
वह अपने जीवन भर के अनुभव शास्त्रों और ग्रंथों के रुप में हमारे लिए - अर्थात नई पीढ़ी के लिए छोड़ गए। 
उन्होंने रास्ता खोजा और न केवल हमारे लिए इसे प्रशस्त किया - बल्कि कुछ दिशाऔर निर्देश भी लिख दिए ताकि हम बिना किसी बाधा के गंतव्य तक पहुंच सकें।

हम अक्सर उनकी उपलब्धियों की चर्चा करते हैं और कभी-कभी उनकी त्रुटियों के बारे में भी बात करते हैं।
कुछ लोग उनकी अवधारणाओं को श्रद्धा के साथ मानते हैं।
और कुछ लोग उनकी धारणाओं - और उनकी वैधता एवं निष्ठा पर भी सवाल उठाते हैं। 
यहाँ तक कि कुछ लोग उनका मजाक भी उड़ाते हैं।

लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पुरानी पीढ़ी के लोगों ने -  जो वे कर सकते थे - वह किया - 
वो अपने कार्य -  अपनी खोज और आविष्कार हमारे लिए छोड़ गए ताकि हम उनका आनंद भी ले सकें और उन्हें आगे बढ़ा सकें । 
उनकी खोज का फायदा उठा कर - जहां पर उन्होंने छोड़ा, वहां से और आगे बढ़ा सकें और हर चीज़ को पहले से बेहतर बना सकें। 

अब सवाल यह है कि हम क्या कर रहे हैं?
हम अपने लिए और आने वाली पीढ़ी के लिए क्या कर रहे हैं ?
                                        ' राजन सचदेव '   

New versus Old Generation

During a conference on the differences between generations - a smug and arrogant student took the time to explain to an older gentleman why the older generation can't understand the new generation.

"You grew up in a different world, actually almost primitive," 
he said in a loud, arrogant voice - loud enough to be heard about.

"Young people today grew up with television, internet, cell phones, jet planes, and space travel.
Our space probes have visited Mars.
We have electric and hydrogen cars - ships with nuclear power - computers with a processing speed of light, and many more such things.
Did you have any of these when you were growing up?"

The old man calmly responded by saying:
"You're right, my son - we did not have any of those things when we were young .....
So we invented all these things!"

"Now tell me! you, arrogant son of a....,
While enjoying all these things that we invented...
What are you doing for the next generation?"
                                                          (By Unknown writer)

I read the above story somewhere on the internet and thought this example might be true in every field of life. 
Not only in inventing new technologies and gadgets for luxury or appliances for convenience – but it might also apply to the teachers and leaders of social, political and religious, or spiritual organizations.

We enjoy the theories and philosophies of life that the older generations discovered after years of hard work in thinking, researching, and developing their ideologies.
They left their lifelong experiences in the form of literature and Scriptures for us - for the newer generation.
They discovered the path and paved it for us - and left directions and instructions so we may reach the destination without obstacles.

We often talk about their accomplishments and sometimes their faults as well. 
Some validate their concepts with reverence.
Some question - not only their perceptions but their integrity as well. Some may even make fun of them.

But nevertheless – the older generation did what they could - and they left their work - their inventions and discoveries for us to enjoy - and to enhance them further. 
So that we can pick up from where they left off and improve them.

Now – the question is - what are we doing?
For ourselves and for the next generation?
                                        ' Rajan Sachdeva '

Thursday, May 26, 2022

An Airplane of 1930

                              Inside of an airplane - 1930

Apparently, we have come a long way since 1930 in improving the speed and comforts of air travel.
As the times change, we want to adopt new ideas - new views to improve our lifestyle. 

But, when it comes to religion, some people want to stick to the centuries-old views and dogmas. 
They want to stick to the social rules that were written a thousand or two thousand years ago. 
Perhaps that was the need of the time - appropriate for that time.
But as time changes, so do the norms of society. 
Our world is not confined to small villages or towns anymore. 
We have become a global society now - where we have to live and deal with people from all walks of life. 

No one says we can not change the structure or technology of the airplane designed by its original inventors. 
But we refuse to change the social rules written a long time ago in some religious books that may not apply or fit in today's world. 
If someone still wants to stick to the old dogmas, it's their choice. 
But at the same time, they should also accept how others want to live their life. 
They should not enforce their own views upon others. 
If I do not want to ride in a new airplane, it's my choice - 
But do I have a right to force everyone to still ride in a 1930 airplane?
                      ' Rajan Sachdeva '

Wednesday, May 25, 2022

Everyone is expert in preaching (Par-updesh kushal bahuteray)

Jhaank rahay hain idhar udhar sab 
Apnay andar jhaankay kaun ?

Dhoondh rahay hain sab mein kamiyaan 
Apnay man ko jaanchay kaun? 

Sab kehtay hain duniya sudhray
Khud ko magar sudhaaray kaun ? 

Par-updesh kushal bahuteray 
Apnay karm vichaaray kaun ?

Ham sudhren to jag sudhrega 
Lekin ye sveekaaray kaun?


             English  Translation

Everyone is looking here and there
Who looks within themselves? 

Everyone is looking at flaws in others
Who looks at their own faults? 

Everyone says the world should be rectified
Who tries to correct themself?

Everyone is an expert in preaching to others
Who evaluates and judges their own deeds?

If we improve - then the world will improve
But who will abide by this simple fact?

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

झाँक रहे है इधर उधर सब 
अपने अंदर झांकें कौन ?

ढूंढ़ रहे हैं सब में कमियां 
अपने मन को जांचे कौन?

सब कहते हैं दुनियाँ सुधरे 
खुद को मगर सुधारे कौन ?

पर उपदेश कुशल बहुतेरे 
अपने कर्म विचारे कौन ?

हम सुधरें - तो जग सुधरेगा
लेकिन ये स्वीकारे कौन?

Tuesday, May 24, 2022

آسمانوں سے میری جان اتر





 مان جا اب بھی دل میں آن اتر 
آسمانوں سے میری جان اتر 

میری پلکیں ہیں منتظر کب سے 
 تو کبھی زیر-ے- سایبان اتر 

میں زمیں ہوں تو ایک دن تو ہی 
مہرباں ہو کے آسمان اتر 

جیت لینا ہی تو نہیں سب کچھ 
بس یہ ہی آج دل میں ٹھان  اتر 

جوں سمندر پے شام جھکتی ہے 
یوں کبھی دل پے مہربان اتر 

ذات گہرائی ہے سرابوں کی 
جان-ے-شہزاد  بےتکان اتر 

          " فرحت شہزاد " 

Aasmaanon say meri jaan utar - Come down from the skies




Maan jaa ab bhee dil mein aan utar
Aasmaanon say meri jaan - utar 

Meri palken hain muntazir kab say
Too kabhi zer-e -saayebaan utar 

Main zameen hoon to ek din tu hee 
Meharbaan ho kay aasmaan, utar 

Jeet lenaa hee to nahin sab kuchh 
Bas yahee aaj dil mein thaan utar 

Joon samandar pay shaam jhukti hai 
Yoon kabhi dil pay meharbaan, utar

Zaat gehraayi hai saraabon kee 
Jaan-e-shahazad be-takaan utar
                    " Farhat Shahzad "

Muntazir     =  Waiting 
Joon            =   As
Zaat            =   The Self, Existence, Spirit 
Saraab  =       Mirage 
Be-Takaan  = Without hesitation, Without tiredness, lethargy, or lassitude 
        
                                Translation

Please listen to me - my dear beloved friend

Come down from the skies - 

and go deep within your heart (Search within)


My eyes have been waiting for a long time.

Please come down - under my roof (in the core of my heart)


If I am the ground, then one-day O' Sky (heaven), 

Please be kind and come down to me. 


Winning is not everything in life. 

Just confine this in your heart and come down.


Just as the night falls over the sea (and covers it)

In the same way, come down and take over my heart - The benevolent one.


The Self is (hidden) under the depth of all the mirages (Maaya) we see

O' dear Shahzad - come down - dive deep - without hesitation

 - Without tiredness, lethargy, or lassitude. 


आस्मानों से मेरी जान, उतर




मान जा अब भी दिल में आन उतर
आस्मानों से मेरी जान - उतर

मेरी पलकें हैं मुंतज़िर कब से 
तू कभी ज़ेरे -सायबान उतर 

मैं ज़मीं हूँ तो एक दिन तू ही 
मेहरबां हो के आस्मान, उतर 

जीत लेना ही तो नहीं सब कुछ 
बस यही आज दिल में ठान उतर 

जूँ समंदर पे शाम झुकती है 
यूँ कभी दिल पे मेहरबान उतर 

ज़ात गहराई है सराबों की 
जाने-शहज़ाद बे-तकान उतर 
               " फ़रहत शहज़ाद "

सराब  = मृग तृष्णा   Mirage 
बे-तकान   = बिना हिचकिचाहट,  बे-थकान  
               Without hesitation, Without tiredness, lethargy, or lassitude 

Monday, May 23, 2022

सात अनमोल तथ्य

                सात अनमोल तथ्य

दर्पण -  
कभी  झूठ नहीं दिखाता
ज्ञान - कभी भयभीत नहीं होने देता
सत्य - 
कभी कमजोर नहीं होने देता
सच्चा प्रेम - कभी ईर्ष्या नहीं करने देता
सच्चाआध्यात्म - मोह नहीं होने देता
सही कर्म - कभी असफल नहीं होने देता
विश्वास - कभी निराश नहीं होने देता

Seven Facts

                             Seven Facts

The mirror does not let you see a false image
True Knowledge does not let you be afraid
Truth does not let you become weak
True Love does not let you become jealous
True Spirituality does not let you get attached to materialism
Right Karma (Action) Does not let you fail
True faith does not let you become sad

Saturday, May 21, 2022

Dukh Daaru Sukh Rog Bhayaa -- Sufferings take us closer to God

Usually, when we are happy and satisfied with our circumstances, we do not remember God.
But when we are suffering - or if we need something, we suddenly remember God and start praying.
And even if we do pray in the happy times - during joyous festivities and celebrations - it’s not with the same intensity as when we pray in distress.
When in distress, we desperately start looking for some help - and when nothing else works, we turn to God.
The intensity of prayer in the moment of distress and helplessness is what brings us closer to the Almighty.

When a child is full of energy, he does not want to be held by the mother and sit on her lap for long.
He wants to play and run around.
When full of energy and not hungry, he moves away from the mother
and when he is hurt or hungry, he runs towards the mother.
Though the child always needs the mother - but the intensity of his love is different in different situations.
When he is hurt or hungry - only then does he want to nestle in the mother’s lap.

When it comes to God - most of us also tend to do the same.
It’s natural to get absorbed in the joys of life - with dancing and entertainment during the parties and festivities and forget everything else.
We may thank the Almighty momentarily or occasionally for that joy and happiness - but the sincerity and intensity of our gratitude would be different.
For example - while riding in a cab with a rough and reckless driver - a passenger who is scared to death prays for his safe arrival.
On the other hand, another person prays as part of the routine or a ritual sitting in a Temple, Gurudwara, Church, or in an air-conditioned congregation hall.
There would be an immense difference in the sincerity and intensity of their prayers in both scenarios. 

Wouldn’t it be nice if we could remember the Almighty and pray with the same passion during the happy moments also?
It sounds good - fair and appropriate, but it may not be so easy.
Therefore, occasionally we should spend some time at least concentrating upon Sumiran with undivided attention and dedication towards the Almighty.
                                            ‘Rajan Sachdeva’

दुःख दारु सुख रोग भया

आमतौर पर, जब हम प्रसन्न एवं परिस्थितियों से संतुष्ट होते हैं, तो हमें ईश्वर की याद नहीं आती।

लेकिन जब हम किसी कारण से दुखी या पीड़ित होते हैं - अगर हमें किसी चीज़ की ज़रुरत होती है, तो हमें झट से प्रभु की याद आ जाती है और हम सर झुका कर प्रार्थना करने लगते हैं।

बेशक़ हम खुशी के समय - उत्सवों और समारोहों के दौरान भी कुछ न कुछ प्रार्थना एवं प्रभु का धन्यवाद करते हैं - लेकिन तब हमारे मन के भावों में उतनी तीव्रता नहीं होती। खुशी के समय में की गई प्रार्थना में उतनी गहराई और तीव्रता नहीं होती जितनी तीव्रता संकट में की जाने वाली प्रार्थना में होती है।   
जब संकट में होते हैं, तो हम हताश होकर किसी मदद की तलाश करने लगते हैं - और जब कहीं से भी काम न बने तो हम भगवान की ओर मुख करते हैं। संकट और असहायता का वह क्षण - और उस क्षण में की गई मार्मिक प्रार्थना की तीव्रता हमें सर्वशक्तिमान प्रभु के निकट ले जाती है।

जब एक बच्चा ऊर्जा से भरा होता है, प्रसन्नचित होता है तो वह मां के पास या उसकी गोद में बैठा नहीं रहता है। 
वह चारों ओर दौड़ना और खेलना चाहता है।
जब उसे भूख नहीं होती - जब वह ऊर्जा से भरपूर होता है तो वह मां की गोद से उठ कर दूर चला जाता है। 
लेकिन जब उसे भूख लगती है - या कहीं चोट लगती है तो वह मां की ओर भागता है।
हालाँकि बच्चे को माँ की ज़रुरत तो हमेशा ही होती है - लेकिन उसके प्रेम की तीव्रता अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग होती है।
जब उसे भूख लगी हो - या चोट लगी हो तो वह माँ की गोद में बैठना चाहता है - अन्यथा नहीं।

अक़्सर हमारी स्थिति भी ईश्वर के मामले में  ऐसी ही होती है। 
जब ईश्वर की बात आती है तो हम लोग भी प्राय ऐसा ही करते हैं। 

पार्टियों और उत्सवों के दौरान नृत्य और मनोरंजन में डूब कर बाकी सब कुछ भूल जाना स्वाभाविक ही है। 
कभी-कभी हम ऐसे खुशी के अवसरों पर सर्वशक्तिमान प्रभु को धन्यवाद तो देते हैं - लेकिन उस प्रार्थना और कृतज्ञता के समय हमारे मन की भावना कुछ अलग होती है। उसमें तीव्रता कम और औपचारिकता अधिक होती है। जल्दी से दो चार मिनट औपचारिक रुप से प्रार्थना करने के बाद हम नाच-रंग की मस्ती में डूब जाते हैं। 

ज़रा सोचिए - एक आदमी - जो ग़लती से किसी लापरवाह ड्राइवर के साथ उसकी कार या टैक्सी में बैठ गया हो - वो किस तरह पूरे रास्ते एक्सीडेंट से, मौत से डरता हुआ - हर पल भगवान से सुरक्षित यात्रा के लिए मन ही मन गिड़गिड़ाते हुए प्रार्थना करता है कि वह किसी तरह अपने गंतव्य स्थान पर सही सलामत पहुँच जाए। 

और दूसरी तरफ वो इंसान - जो बनाम दिनचर्या (Routine) या अनुष्ठान (Ritual) के रुप में किसी मंदिर, गुरद्वारे, चर्च या एक वातानुकूलित सत्संग हॉल में बैठा भगवान से प्रार्थना करता है - दोनों की भावना में - उनकी प्रार्थना में कितना अंतर होगा।  

क्या यह अच्छा नहीं होगा यदि हम सर्वशक्तिमान प्रभु को हर समय याद कर सकें और खुशी के क्षणों के दौरान भी उतनी तीव्रता - उसी श्रद्धा के साथ प्रार्थना कर सकें?

कहने और सुनने में तो यह बहुत अच्छा और सही लगता है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है।
फिर भी हमें चाहिए कि कुछ समय एकांत में बैठ कर निरंकार प्रभु का ध्यान करें - सुमिरन करें ताकि एकाग्र भाव से प्रभु चरणों में समर्पित हो सकें । 
                                        ' राजन सचदेव ’

Friday, May 20, 2022

When you find the right friends and companions

Choosing the wrong people may or may not affect our lives - 
but neglecting the right people may result in regret for the rest of our life.
Therefore, when you find the right friends and companions, 
appreciate them - acknowledge their value, and give them due respect.
Do not create distance by keeping anger in your mind for small, petty things.
                       "Rehman Dhaaga Prem ka mat todo chatkaaye
                        Tootay to phir juday nahin - Juday gaanth par jaaye"
Meaning: 
Once the thread of love and affection is broken, it can not bond again.
And even if you bind it together, the knot remains forever.

Once a crack occurs, it becomes difficult to fill it.
So appreciate every relationship - 
Every friendship and fellowship - 
and take proper care of them.
Don't create strife over little things - 
Or we might lose them forever.
                         " Rajan Sachdeva "

जब जीवन में कोई सही मित्र या साथी मिल जाएं

ग़लत व्यक्तियों का चयन हमारे जीवन को प्रभावित करे या न करे,
लेकिन सही व्यक्तियों की उपेक्षा करने पर हमें जीवन भर पछताना पड़ सकता है। 
इसलिए, जब जीवन में कोई सही मित्र या साथी मिल जाएं तो उनकी क़दर करें - 
उनका मूल्य समझें और यथायोग्य आदर करें। 
छोटी छोटी बातों के लिए मन में रोष रख कर दूरी न बनाएं।   
              "रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए 
               टूटे ते फिर जुड़े नहीं - जुड़े गांठ पड़ जाए "

अर्थात: अगर एक बार प्रेम का धागा टूट जाए तो फिर जुड़ता नहीं है। 
और अगर जोड़ भी लें तो उसमें हमेशा के लिए गाँठ तो पड़ी ही रहती है। 

एक बार कहीं दरार पड़ जाए तो उसे भरना मुश्किल हो जाता है।
इसलिए हर रिश्ते, हर संबन्ध की क़दर करें - उन्हें संभाल कर रखें 
और छोटी छोटी बातों के लिए मनमुटाव पैदा न करें । 
कहीं ऐसा न हो कि हम उन्हें सदा के लिए खो दें।
                             " राजन सचदेव  "

Thursday, May 19, 2022

प्रतिशोध - बदला

अगर हम हमेशा अपने दुश्मनों और प्रतिद्वंदियों के बारे में सोचते रहेंगे 
तो धीरे धीरे - जाने या अनजाने में हम भी उनके जैसे ही बन जाएंगे। 
जितनी ज़्यादा हम उनसे नफरत करेंगे - 
उतनी ही हम अपने मन की शांति खो देंगे। 
हम हमेशा बेचैन और चिंतित रहने लगेंगे। 

यदि हम अपने दुश्मनों और प्रतिद्वंदियों के बारे में सोचना बंद कर दें 
तो धीरे-धीरे हमारे मन से दुश्मनी और नफरत की भावना दूर हो जाएगी। 
हमारा मन शांत और स्थिर रहेगा।
हम हमेशा शांत और प्रसन्नचित रहने लगेंगे।   
और हमारे दुश्मन अथवा प्रतिद्वंदी निश्चित रुप से - कदापि ऐसा नहीं चाहेंगे। 

हमें शांत, प्रफुल्लित और प्रसन्नचित देखकर वे और अधिक बेचैन हो जाएंगे।
उनकी चिंता और उद्विग्नता और बढ़ जाएगी। 
वो हमेशा परेशान ही रहेंगे। 
ज़रा सोचिए -  दुश्मनों और प्रतिद्वंदियों से बदला लेने का ये एक अच्छा ढंग नहीं है क्या? 
                                                       ' राजन सचदेव '

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...