Friday, March 8, 2024

महा शिवरात्रि और अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस

अधिकांश प्राचीन सभ्यताओं और संस्कृतियों में पुरुष को सर्वोच्च माना जाता था। 
और नारी को पुरुष के मुकाबिले में कमज़ोर और पुरुषों के अधीन माना जाता था।
आधुनिक समय में कई महिला सशक्तिकरण या 'नारी-शक्ति' आंदोलन उभरे हैं जिन्हों ने पूरी दुनिया में काफी लोकप्रियता हासिल की है। 
'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' जैसे कई उत्सव भी आजकल बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं।

लेकिन कुछ मज़हब और संस्कृतियाँ ऐसी हैं जो अभी भी ये मानती हैं कि पुरुष महिलाओं से बेहतर और ऊंचे होते हैं।
दूसरी ओर - कुछ लोग ये दावा करते हैं कि महिलाएं पुरुषों से कहीं ऊंची - मानसिक और शारीरिक रुप से पुरुषों की तुलना में अधिक मजबूत और सहनशील होती हैं।

सत्य तो यह है कि उपरोक्त कोई भी दृष्टिकोण व्यावहारिक नहीं है।
पुरुषों और महिलाओं को प्रतिस्पर्धी नहीं - बल्कि एक-दूसरे के पूरक माना जाना चाहिए। 

प्राचीन हिंदू अथवा भारतीय संस्कृतियाँ हमेशा से ही पुरुष और महिला को समान दर्जा देती रही हैं।
नारी को देवी माना जाता था और उन्हें पूरा सम्मान और आदर दिया जाता था। 
भारत में प्राचीन काल से ही दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, सीता और पार्वती जैसी देवियों की पूजा की जाती रही है। 
आज भी हिंदू महिलाओं को दिए जाने वाले सबसे अधिक लोकप्रिय और अग्रणीय मंझले नाम 'देवी और रानी' जैसे सम्मानसूचक शब्द ही हैं।

प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार:
     "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः"
                          (मनु स्मृति)
अर्थात: जहां स्त्रियों का आदर और सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं।

 वेदों ने लैंगिक समानता के बारे में एक बहुत ही सुंदर और महत्वपूर्ण बात कही है:
           "न शिव शक्ति रहितो - न शक्ति शिव वर्जिता
            उभयोरस्ति तादात्मयं वन्हि दाहकयोरिवा''

इस श्लोक में शिव और शक्ति को पुरुष और नारी शक्तियों या ऊर्जा के रुप में देखा गया है।
यहां कहा गया है कि न तो शिव शक्ति के बिना हैं और न ही शक्ति शिव के बिना है।
उभयो - अर्थात दोनों - एक ही हैं - एक दूसरे के पूरक हैं। 
जैसे अग्नि और ज्वाला अलग-अलग नहीं हैं - अग्नि और दहन-शक्ति को विभाजित करके एक को उच्च और दुसरे को निम्न नहीं माना जा सकता। 
वे दोनों एक ही हैं।
इसी प्रकार शिव और शक्ति को भी विभक्त अथवा पृथक करके उन्हें ऊँचा-नीचा नहीं माना जा सकता। 
वे एक ही हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं।
               "मात-पिता बिन बाल न होई" (गुरबानी)
अर्थात बाल यानी संतान को पैदा करने और पालने के लिए माता और पिता - दोनों की आवश्यकता होती है।

प्रकृति ने संसार की निरंतरता के लिए दोनों को समान रुप से बनाया है। 
दोनों की ही परिवार और समाज में योगदान देने के लिए अपनी-अपनी भूमिकाएं होती  हैं। अपने अपने कर्तव्य और दायित्व होते हैं। 
इसलिए, नारी और पुरुष - दोनों को समान रुप से सम्मान दिया जाना चाहिए 
किसी एक को दूसरे से ऊँचा या नीचा मानने की बजाए दोनों को बराबर का आदर सत्कार दिया जाना चाहिए। 
क्योंकि यदि दोनों में से एक भी न रहा - तो संसार समाप्त हो जाएगा। 
                                               " राजन सचदेव "

           महा शिवरात्रि और अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ

1 comment:

  1. What a beautiful explanation Rajanjee ! Very nicely done!!

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Na vo vaqt raha na main (Neither that time nor I...)

           Na vo shauq rahay - Na vo zid rahi             Na vo vaqt raha - Na vo main raha                            ~~~~~~~~~~~~~ Neither...