Friday, January 6, 2023

सुमिरन में मन लगता नहीं

हसऱतों  का  बोझ  लेकर  बैठते  हैं  ध्यान  में 
फिर शिकाय़त भी है ये सुमिरन में मन लगता नहीं 

बांधना मुश्किल है इसको - दौड़ता है हर घड़ी          
मन वो चंचल पंछी है जो इक जगह टिकता नहीं 

मन भरा है 'काम से तो - राम कैसे आएंगे 
इक भरे बर्तन में 'राजन 'और कुछ पड़ता नहीं 
                               " राजन सचदेव "

काम     =  कामनाएँ, वासनाएँ , इच्छाएँ 

11 comments:

  1. Beautiful ji💐🙏

    ReplyDelete
  2. ASHOK KUMAR CHAUDHARYJanuary 6, 2023 at 10:31 AM

    Reality

    ReplyDelete
  3. 👍🙏🏻wahji

    ReplyDelete
  4. 🙇‍♀️🙏👌

    ReplyDelete
  5. Real Mei jitni Der simran kar kabhi akagra nahi hota

    ReplyDelete
  6. वाह वाह! इतने बड़े बर्तन में राजन कुछ पड़ता नहीं 👌🏼

    ReplyDelete
  7. Very practical poem

    ReplyDelete

न समझे थे न समझेंगे Na samjhay thay Na samjhengay (Neither understood - Never will)

न समझे थे कभी जो - और कभी न समझेंगे  उनको बार बार समझाने से क्या फ़ायदा  समंदर तो खारा है - और खारा ही रहेगा  उसमें शक्कर मिलाने से क्या फ़ायद...