Wednesday, October 7, 2020

दिल है कि फिर भी गिला करता रहा

ज़िंदगी में  सब कुछ तो मिलता रहा
दिल है कि फिर भी गिला करता रहा

बिरवा मेरे आँगन का मुरझा गया
सहरा में इक फूल मगर खिलता रहा

बातिन-ओ-ज़ाहिर न यकसाँ हो सके 
कशमकश का सिलसिला चलता रहा

औरों  को  देते   रहे  नसीहतें
आशियां अपना मगर जलता रहा

माज़ी का रहता नहीं उसको मलाल
वक़्त के सांचे  में जो  ढ़लता रहा

पा सका न वो कभी 'राजन ' सकूँ
जो हसद की आग में जलता रहा
                             ' राजन सचदेव '
                         
बिरवा                                पेड़  Tree
सहरा                                रेगिस्तान, Desert
बातिन-ओ-ज़ाहिर             अंदर-बाहर  Inside & outside  - Hidden & Visible - Thoughts & Actions
यकसाँ                              एक जैसा  Same, similar, as one
माज़ी                               भूतकाल Past
मलाल                             अफ़सोस Regret
हसद                               ईर्ष्या, Jealousy 

3 comments:

न समझे थे न समझेंगे Na samjhay thay Na samjhengay (Neither understood - Never will)

न समझे थे कभी जो - और कभी न समझेंगे  उनको बार बार समझाने से क्या फ़ायदा  समंदर तो खारा है - और खारा ही रहेगा  उसमें शक्कर मिलाने से क्या फ़ायद...