Tuesday, October 13, 2020

महात्मा संसार चंद जी - अख़नूर

जीवन में न जाने कितने लोग मिले और बिछड़े। 
                                लोग मिलते और बिछड़ते रहे 
                               उमर भर ये सिलसिला चलता रहा 

लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका मिलना और बिछड़ना हमारे मन में गहरी यादें छोड़ जाता है।
ऐसे ही हमारे एक पुराने सहयोगी महात्मा संसार चंद जी - जो जम्मू-काश्मीर की एक ब्रांच अख़नूर के संयोजक थे - कल इस नश्वर संसार से विदा हो गए।
मुझे वो दिन आज भी अच्छी तरह याद है जब पहली बार अख़नूर के एक मंदिर में हमने सत्संग का आयोजन किया। सत्संग के बाद संसार चंद जी अपने कुछ मित्रों के साथ मेरे पास आए और कहने लगे कि मेरी इच्छा है कि आप मेरे घर आकर मुझे, मेरे परिवार और इन मित्रों को ज्ञान प्रदान करें।
तीन चार अन्य महांपुरुषों के साथ सहर्ष - बड़ी ख़ुशी से हम उनके घर गए जहाँ उन्होंने बड़े प्रेम से सेवा की और श्रद्धा सहित ज्ञान भी लिया और बहुत प्रसन्न हुए।
ज्ञान के बाद मैंने उनसे कहा कि आपकी इच्छा के अनुसार हम आपके घर आए - अब मेरी भी एक इच्छा है। 
उन्होंने पूछा क्या? 
तो मैंने कहा कि मेरी इच्छा है कि अख़नूर में भी किसी जगह मुतवातिर हफ़्तावार (Weekly)सतसंग होना चाहिए। 
उन्होंने बड़ी ख़ुशी और जोश से कहा कि यहीं हमारे घर में हर हफ़्ते सत्संग रख दीजिए। उस दिन के बाद पांच छह साल लगातार - ग़ालिबन हर वीरवार मैं कुछ अन्य संतों को साथ लेकर उनके घर सत्संग के लिए जाता रहा और उनके सहयोग से अख़नूर और आसपास के क्षेत्रों में प्रचार होता रहा।
उस दिन से लेकर अंत समय तक - उमर भर वो सतगुरु निरंकार की कृपा से आस पास के गांव और कस्बों में सत्य का प्रचार करते रहे।
उनका प्रेम और प्रचार में योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। बहुत से महांपुरुषों ने उनके लिए प्रेम और श्रद्धा के संदेश भेजे हैं। दातार प्रभु उनके परिवार और प्रियजनों को यह वियोग सहन करने की शक्ति प्रदान करे।
                                                             ' राजन सचदेव '

4 comments:

Easy to Criticize —Hard to Tolerate

It seems some people are constantly looking for faults in others—especially in a person or a specific group of people—and take immense pleas...