Tuesday, February 6, 2024

बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा

कवि नीरज  की एक दार्शनिक रचना  - जो कल भी सत्य थी, और आज भी  
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बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा
वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा

ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत-ए-दुनिया
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा

मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा

बड़ा न छोटा कोई फ़र्क़ बस नज़र का है
सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा

ज़बाँ है और बयाँ और - उस का मतलब और
अजीब आज की दुनिया का व्याकरन देखा

लुटेरे डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे
उन्होंने आज जो संतों का आचरन देखा

जो सादगी है कुहन में हमारे ऐ 'नीरज'
किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा
            ~ पद्मभूषण डॉ. गोपालदास 'नीरज' ~

कुहन         =  पुरातन, पुराना, (हमारी पुरानी सभ्यता) 




3 comments:

  1. Nice poem covering many aspects.🙏

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  2. Haqeeqat ka alaam yahe hai ji aaj ka doar

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  3. भाषा और भावनाओं का अप्रतिम मीलन देखा
    दिलको छुनेवाला नीरजजी का शब्दोंका जादु देखा
    🙏🙏🙏🙏🙏

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