ये सदी हमको कहाँ ले जाएगी
तीरगी हमको कहाँ ले जाएगी
पूछती हैं मछलियों से मछलियां
ये नदी हमको कहाँ ले जाएगी
जुगनुओं के जिस्म से निकली हुई
रोशनी हमको कहाँ ले जाएगी
" सुरेंद्र शास्त्री "
तीरगी = अंधेरा
न समझे थे कभी जो - और कभी न समझेंगे उनको बार बार समझाने से क्या फ़ायदा समंदर तो खारा है - और खारा ही रहेगा उसमें शक्कर मिलाने से क्या फ़ायद...
Naa samjhe to yahi bhatkayegi!
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