ये सदी हमको कहाँ ले जाएगी
तीरगी हमको कहाँ ले जाएगी
पूछती हैं मछलियों से मछलियां
ये नदी हमको कहाँ ले जाएगी
जुगनुओं के जिस्म से निकली हुई
रोशनी हमको कहाँ ले जाएगी
" सुरेंद्र शास्त्री "
तीरगी = अंधेरा
ये कलियुग है जनाब — झूठ चाहे धीरे से ही बोलो तो भी सब सुन लेंगे और सच अगर चिल्ला-चिल्लाकर भी कहो तो भी कोई सुनने वाला न...
Naa samjhe to yahi bhatkayegi!
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