एक बार, आदि शंकराचार्य ने एक धर्माचार्य को अपने शिष्यों को मंत्रों का पाठ करते समय व्याकरण संबंधी गलतियों और अशुद्ध उच्चारण के लिए बुरी तरह डांटते हुए देखा।
यह देखकर शंकराचार्य ने कहा:
भज गोविन्दं, भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते
संप्राप्ते सन्निहिते काले, नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे
अर्थात :
अर्थात :
हे भटके हुए प्राणी - गोविंद का ध्यान करो, गोविंद का भजन करो - परमात्मा का ध्यान करो -
अंतकाल अर्थात मृत्यु के समय कर्मकांड, नियम, या व्याकरण तुम्हें नहीं बचा पाएंगे।
सांसारिक और भाषा एवं व्याकरण का ज्ञान किसी काम नहीं आएगा।
केवल भक्ति, प्रेम, और शुद्ध भावनाएँ ही प्रभु के दरबार में मायने रखती हैं - नियम, व्याकरण या शब्दों का उच्चारण नहीं।
यदि वे कुछ गलत भी कह जाएं तो सर्वशक्तिमान सर्वज्ञ भगवान जानते हैं कि भक्तों के मन एवं चित्त में क्या है।
"गोविन्द भाव भक्ति का भूखा "
वह तो केवल मन के भाव देखता है - बाहर के आडंबर नहीं।
' राजन सचदेव '
DNJ
ReplyDeleteBoth the Hindi and English versions are excellent and so true.
ज्ञान से हम निरंकार को अच्छी तरह पहचान सकते हैं।
लेकिन भक्ति भाव ही हम को निरंकार से जोड़ता है।
Loved it
ReplyDelete🙏🏿
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