Monday, August 2, 2021

सोहत है श्वेताम्बर गले में - तैसी ये सुंदर पाग कसी है

सोहत है श्वेताम्बर गले में - तैसी ये सुंदर पाग कसी है
देखत ही मस्तक झुक जाए मुख पर छवि अलौकिक सी है
ज्यों नारायण संग लक्ष्मी - राजमाता त्यों संग सुहाए
भारत क्या 'राजन ' यूरोप के जन मन में यह जोड़ी बसी है

                (बाबा गुरबचन सिंह जी एवं राजमाता जी के यूरोप टूर से वापसी पर - 1967 में लिखित )
श्वेताम्बर = सफ़ेद अम्बर (दुपट्टा)

बचपन में, और हाई स्कूल में हिंदी साहित्य में कबीर,तुलसी, सूरदास एवं मीरा इत्यादि के साथ साथ बिहारी, रहीम और रसखान की कविताएं भी पढ़ीं थीं।

मेरी उपरोक्त पंक्तियों का आधार था पंद्रहवीं शताब्दी के एक महान कवि रसखान का यह मुक्तक :

सोहत है चंदवा सिर मोर का तैसी ये सुंदर पाग कसी है
तैसीय गोरज भाल विराजत जैसी हिय बनमाल लसी है
'रसखान ' बिलोकत बौरी भई दृग मूंदि के ग्वाल पुकार हंसी है
खोल री नैन - अब खोलूं कहाँ वह मूरत नैनन मांहि बसी है
                                              सैयद इब्राहीम ख़ान 'रसखान '

कृष्ण की सुंदर छवि का वर्णन करते हुए रसखान कहते हैं कि उनके सर पर बंधी हुई सुंदर पगड़ी के ऊपर कलगी की तरह एक मोरपंख शोभित है। 
माथे पर विराज रहा है गोधूलि का तिलक और हृदय स्थल - अर्थात छाती पर वन के पत्तों आदि से बनी माला लटक रही है। 
ऐसी दीप्तिमान छवि को देख कर गोपियों और ग्वालबाल की आँखें प्रेम और श्रद्धा से झुकी जा रही हैं।  
एक गोपी हंसती हुई कहती है कि हे सखी - आँखें खोल - पलकें उठा के देख कि  कृष्ण सामने खड़े हैं। 
आत्मविभोर हुई वह गोपी कहती है - कैसे खोलूं? 
इन नयनों में मेरे हृदय सम्राट की छवि बसी हुई है - डर लगता है कि आँख खोलने से कहीं वो सुंदर छवि ओझल न हो जाए।  

यह प्रेम की पराकाष्ठा है। भक्ति-युग और वेदान्त की मिली जुली विचारधारा है। 
प्रेम इतना गहरा है कि अब आँख से दर्शन की बजाए मन में प्रभु का दर्शन करना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है । 
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सैयद इब्राहीम ख़ान का जन्म तो अफ़ग़ानिस्तान में हुआ था लेकिन वह भारत में आकर बस गए थे। भगवान कृष्ण की जीवन लीलाएँ सुन कर वह इतने प्रभावित हुए कि वह अंततः कृष्ण के अनन्य भक्त बन गए और वृन्दावन में जाकर रहने लगे।

फ़ारसी और हिंदी में दो मिलते जुलते शब्द हैं - ख़ान और खान - लेकिन दोनों के अर्थ अलग हैं।
ईरान और अफ़ग़ानिस्तान में ख़ान एक प्रतिष्ठित उपाधि - एक ख़िताब अथवा Title है जो कि आजकल surname के तौर पर भी इस्तेमाल होता है।

हिंदी शब्द खान का अर्थ है Mine अथवा Treasure - जैसे कि कोयले की खान (coal mine) और सोने की खान अर्थात Gold mine
इब्राहीम ख़ान की हिंदी कविता में इतना रस था कि उन्हें रस की खान कहा जाने लगा और धीरे धीरे उनका उपनाम हो गया ' रसखान '
                                                                ' राजन सचदेव '

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