Thursday, August 26, 2021

आशा और तृष्णा रुपी वर्षा की बूँदें

प्यासे मन की उर्वर भूमि पर हर क्षण विचारों - आशा, तृष्णा और कामना रुपी वर्षा की बूँदें बरसती ही रहती हैं।

ये कामनाएं और तृष्णाएँ - प्रारम्भ में तो छोटी छोटी बूंदों की तरह लगती हैं, लेकिन धीरे धीरे इकट्ठा हो कर अंततः एक पोखर - एक तालाब की तरह बन जाती हैं। और फिर मन हर समय उन्हीं विचारों और भावनाओं - उन्हीं इच्छाओं एवं कामनाओं के सरोवर में ही तैरता रहता है - और अंततः उसी में डूब जाता है।

ज्ञान रुपी सूर्य के प्रकाश और गर्मी को इन विचारों और इच्छा रुपी बारिश की बूंदों तक पहुंचने दें - जो उन्हें बादल की तरह ऊपर उठा कर वास्तविकता के उच्च लोकों तक ले जाने में सक्षम है।

यह सुंदर और प्रसिद्ध वैदिक प्रार्थना आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण और एवं अनुकरणीय है :
                     असतो मा, सद गमय
                     तमसो मा ज्योतिर्गमय
                     मृत्योर्मा अमृतं गमय


असत्य से सत्य - अर्थात वास्तविकता की ओर
अंधकार से प्रकाश की ओर - अर्थात अज्ञानता से ज्ञान की ओर
और मृत्यु से अमरत्व की ओर -
अर्थात नश्वर शरीर से ऊपर उठ कर अमर आत्मा तक जाने का प्रयत्न करें 
                                     ' राजन सचदेव '

2 comments:

Jab tak saans chalti hai - As long as the breath continues

      Uthaana khud hee padta hai thakaa toota badan 'Fakhri'       Ki jab tak saans chalti hai koi kandhaa nahin detaa              ...