Tuesday, August 10, 2021

श्रद्धांजलि एवं संस्मरण - पूज्य वी डी नागपाल जी

श्रीमद्भगवद्‌गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:
                  ' जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु '
अर्थात जिसने जन्म लिया है उसका मरण भी निश्चित है। 
यह प्रकृति का नियम है। जो भी संसार में आता है वो एक दिन संसार से चला जाता है ।
लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं - जो हमारे मन पर एक अमिट छाप छोड़ जाते हैं - ऐसी खूबसूरत यादें छोड़ जाते हैं जिनसे हम निरन्तर प्रेरणा ले सकते हैं |
ऐसी ही एक महान शख़्सीयत थे आदरणीय श्री वी डी नागपाल जी - जिन्होंने युवावस्था में मेरे विचारों को सही दिशा और मेरे विश्वास को मजबूत करने में एक अहम भूमिका निभायी |

1969 में सरकारी महिला कॉलेज, पटियाला में जूनियर लेक्चरर की पद पर जब मैंने ज्वाइन किया, तो उस समय पूज्य नागपाल जी पंजाब इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में जे. ई. थे। उन्हीं दिनों मेरी मुलाकात पहली दफा उनसे संत निरंकारी सत्संग भवन पटियाला में हुई | 
पिता जी (संत अमर सिंह जी) नागपाल जी के बहुत करीब थे और उनकी बहुत प्रशंसा किया करते थे और उन्हें बहुत मान देते थे।

शनिवार, रविवार और छुट्टियों के दौरान, मुझे पिता जी के साथ उनके प्रचार टूर पर जाने का सौभाग्य मिलने लगा। विसाखी राम पागल जी (अमर जी), सुशील कुमार सेवक जी और बहन आशा जी तो हमेशा ही साथ होते थे और समयानुसार बहुत सी प्रचार यात्राओं में पूज्य नागपाल जी भी साथ होते थे।
एक संगत से दूसरे स्थान पर सत्संग के लिए जाते हुए स्टेशन वैगन में यात्रा के दौरान बातों ही बातों में पिता जी हमें बहुत सी बातें समझाते रहते थे और अक़्सर हमें गहन आध्यात्मिक शिक्षाएँ भी देते रहते थे। 
संगतों के बाद, या जब भी हमें समय मिलता, हम उन की कही हुई बातों पर चर्चा करते - अपने विचारों और अनुभवों को भी एक दूसरे के साथ साँझा करते थे | धीरे धीरे मुझे नागपाल जी से बहुत लगाव हो गया।हालांकि हमारे बीच उम्र का काफी अंतर था - वो मुझसे काफी बड़े थे लेकिन फिर भी हमारे बीच एक दोस्ताना सम्बन्ध क़ायम हो गया - हम अच्छे दोस्त भी बन गए लेकिन फिर भी मेरे दिल में हमेशा उनके लिए आदर और सम्मान रहा। मैं एक बड़े भाई की तरह उनका सम्मान करता था - और उन्होंने हमेशा मुझे एक छोटे भाई की तरह प्यार दिया और जीवन के हर मोड़ पर मेरा मार्गदर्शन किया।

कई बार ऐसा होता है कि एक छोटी सी घटना भी हमारे जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ जाती है। 
एक ऐसी ही अविस्मरणीय घटना उन दिनों मेरे साथ हुई - जिसने न केवल मेरे विश्वास को मजबूत किया बल्कि मेरी सोच को हमेशा के लिए बदल दिया। इस घटना का ज़िक्र मैंने कई बार व्यक्तिगत और सामूहिक रुप में और संगतों में भी किया है।

एक बार, एक छोटी सी बात पर पिता जी ने सबके सामने मुझे डांट दिया और ग़ुस्से में बहुत कुछ कह दिया।
मुझे बुरा लगा। मैंने अपमानित महसूस किया। 
हालांकि मैं रोज़ सुबह और शाम संगत में तो जाता रहा लेकिन संगत की समाप्ति पर फ़ौरन वहां से निकल आता और संगत के समय के इलावा भवन पर जाना छोड़ दिया। यहाँ तक कि जब भी पिता जी ने प्रचार टूर पर साथ चलने के लिए कहा तो मैंने व्यस्त होने का बहाना करके टूर पर जाने से मना कर दिया | 
वो समझ गए और एक शाम जब नागपाल जी भवन पर आए तो पिता जी ने उनसे कहा - 'लगता है राजन मुझसे नाराज है। वह आपका बहुत सम्मान करता है और आपको बड़े भाई की तरह मानता है - इसलिए आप उस से बात करें।

नागपाल जी मेरे निवास स्थान पर आए - उन दिनों मैं देसी मेहमानदारी में डॉ. दलीप सिंह जी के घर में किराए पर लिए हुए एक कमरे में रहता था। 
क्योंकि हमारे सम्बन्ध दोस्ताना भी थे इसलिए मैंने नागपाल जी से खुलकर अपने दिल की बाते कीं और कहा कि पिता जी ने ऐसा कहा - पिता जी ने वैसा कहा - पिता जी को ऐसा नहीं कहना चाहिए था -- - - 
वो एकदम मेरी बात को बीच में ही काट कर कहने लगे कि अगर आप ये कहो कि अमर सिंह जी ने यह कहा और वो कहा - तब तो ठीक है। लेकिन एक तरफ तो आप उन्हें पिता जी कह रहे हो और फिर इस तरह शिकायतें भी कर रहे हो?
उन्होंने आगे कहा कि अपने पिता के अलावा किसी को पिता जी कहने का मतलब है कि आप उस व्यक्ति को संसार का सर्वोच्च सम्मान दे रहे हैं।
या तो उन्हें पिता मत कहो और अगर पिता मानते हो तो ज़रा सोचो - क्या पिता के डांटने पर पिता को छोड़ दिया जाता है ? 
इसलिए मेरे दोस्त - या तो उन्हें भाई अमर सिंह जी कह के संबोधित करो - पिता जी नहीं। और अगर वास्तव में उनका पिता जी के रुप में सम्मान करते हो तो उसे अपने कर्म द्वारा प्रकट करो क्योंकि कीमत शब्दों की नहीं - कर्म की होती है। 
यह सुनते ही मैं अवाक रह गया और उसी समय पिता जी के दर्शन करने उनके साथ भवन में चला गया।

यह मेरे जीवन की एक बहुत महत्वपूर्ण घटना थी जिसने मुझे एक छोटी सी बात के लिए एक महान संत अमर सिंह जी से दूर होने से बचा लिया - एक ऐसे संत जिनका मिलना किसी के भी जीवन में एक सौभाग्य की बात थी। 
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नागपाल जी पटियाला से 10-12 किलोमीटर दूर एक छोटे से कस्बे नंद पुर केशो में परिवार सहित रहते थे। मैं कभी कभी उनसे मिलने वहां जाया करता था। उनकी पत्नी को मैं अपनी बड़ी दीदी मानता था और वो मुझे राखी बांधतीं थीं। 
नंद पुर केशो में ही नागपाल जी के पिता जी से भी मिलना हुआ। 
एक बार उन्होंने मुझ से कहा कि विशन बचपन से ही विनम्र और सन्त स्वभाव वाला था। 
मैंने पूछा 'विशन कौन ?' 
वे हँस पड़े |
उनके पिता जी के बताने से पहले मैं नहीं जानता था कि उनका नाम विशन दास था - क्योंकि हम सब उन्हें हमेशा सिर्फ नागपाल जी के नाम से ही जानते थे।
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1971 में मैं बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज के आदेश से पटियाला कॉलेज की सर्विस छोड़ कर जम्मू चला गया। 
इधर नागपाल जी का स्थानांतरण मुक्तसर हो गया और बाबा गुरबचन सिंह जी ने उन्हें वहां के नवनिर्मित भवन में रहने का आदेश दिया। 
उन्होंने गुरु की आज्ञा तो मानी लेकिन जब तक भवन में रहे - मासिक किराया देते रहे। उनका कहना था कि अगर कहीं और किराए पर रहते तो वहां भी तो किराया देना पड़ता। 
यहां तक ​​कि उन्होंने भवन में रिहायशी हिस्से (portion) की बिजली की तारों को भवन के बाकी हिस्सों से अलग करवा दिया और अपने हिस्से के बिजली बिल का भुगतान स्वयं करते रहे | 
पंजाब प्रचार टूर के दौरान मुझे अक़्सर ही मुक्तसर जाने और नागपाल जी के चरणों में रहने का सुअवसर भी मिलता रहा। उन दिनों महात्मा सुरजीत सिंह जी विरक भी मुक्तसर में ही रहते थे इसलिए उनका सानिध्य भी वहां मिलता रहा। 
एक बार बातों बातों में ही मैंने नागपाल जी से भवन में रहने का किराया देने और बिजली के बिल इत्यादी देने के लिए उनकी प्रशंसा की तो वो कहने लगे कि ये कोई बड़ी बात नहीं है - मैं तो सिर्फ पिता जी की शिक्षाओं का पालन कर रहा हूं। 

दृढ़ विश्वास के साथ साथ ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और अपने सिद्धांतों का दृढ़ता और कर्मठता से पालन करना - ये कुछ ऐसी अनमोल शिक्षाएं थीं जो पिता संत अमर सिंह जी ने हमेशा हमें सिखाईं और पूज्य नागपाल जी ने उन शिक्षाओं को व्यवहारिक रुप से अपनाया और अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बना लिया।

वे एक महान संत होने के साथ एक कुशल प्रबंधक भी थे जिन के हृदय में सतगुरु के प्रति श्रद्धा और सर्वशक्तिमान निरंकार पर पूर्ण भरोसा एवं विश्वास था। 
जहां वह अपने आधिकारिक कर्तव्यों को निभाने में कुशल थे वहीं एक विनम्र और शुद्ध हृदय संत भी थे।  एक कुशल प्रबंधक और उच्च पदाधिकारी होते हुए भी उनका आध्यात्मिक पक्ष और संत स्वभाव हमेशा प्रबल रहा जो कि उनकी ईमानदारी और विनम्रता के रुप में साफ़ झलकता था |

उनकी कमी तो खलेगी - लेकिन उनकी बातें और उनके गुण - उनके शब्दों के ज़रिये से - और उनके सरल, विनम्र और व्यावहारिक जीवन के माध्यम से हमेशा हमारी स्मृति में बने रहेंगे।
' राजन सचदेव '



मुक्तसर 1981


5 comments:

  1. Rev Nagpal sahab was as good as my GOD FATHER. A.true devotee SHAT SHAT NAMAN USS MAHAN VYAKTITAV KO

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  2. Rev. Rajan ji aapji ka lakh lakh shukriya aise mahan jeevan ke prerak prasango ko share karne ke liye... Life lessons

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  3. Aise Gursikh Jeevan ko Shat shat Na man..🙏🙏🙏

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  4. WAH KYA BAT H ..APJI HR BAT KO ESE KHUL KR DIL SE BYAN KRTE HO KE DIL K BND KIVARH KHUL JATE HAIN
    AUR EK DM CHETEN KR DETE HO DAS KO ..

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कहने को तो ये दुनिया अपनों का मेला है पर ध्यान से देखोगे तो हर कोई अकेला है      ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Kehnay ko to ye duniya apnon ka mela hai...