ये सदी हमको कहाँ ले जाएगी
तीरगी हमको कहाँ ले जाएगी
पूछती हैं मछलियों से मछलियां
ये नदी हमको कहाँ ले जाएगी
जुगनुओं के जिस्म से निकली हुई
रोशनी हमको कहाँ ले जाएगी
" सुरेंद्र शास्त्री "
तीरगी = अंधेरा
न जाने कौन सी बात आख़िरी होगी न जाने कौन सी रात आख़िरी होगी मिलते जुलते बात करते रहा करो यारो न जाने कौन सी मुलाक़ात आख़िरी होगी ...
Naa samjhe to yahi bhatkayegi!
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDelete