Sunday, February 18, 2024

कांच के टुकड़े

कांच के टुकड़ों को फिर जुड़ते नहीं देखा
मुरझाए फूलों को फिर खिलते नहीं देखा

जिस्म के ज़ख़्मों को भरते देखा है लेकिन
दिल के ज़ख़्मों को कभी भरते नहीं देखा  

टूट जाता है अगर डाली से कोई फूल
फिर उसे उस शाख पे लगते नहीं देखा 

जो चला जाता है इस दुनिया को छोड़ कर
फिर उसे आकर कभी मिलते नहीं देखा

मिट गए सारे  सिकंदर  और पयाम-बर 
काम दुनिया का मगर रुकते नहीं देखा *

धर्म और ईमान जिन का पुख़्ता है उन्हें 
चंद पैसों के लिए गिरते नहीं देखा 

इक मुसाफ़िर के लिए 'राजन' कभी हमने
क़ाफ़िले को राह में रुकते नहीं देखा
                  " राजन सचदेव "

सिकंदर   = सिकंदर जैसे सभी शक्तिशाली एवं महान राजे महाराजे 
पयाम-बर  = ख़ुदा / ईश्वर का पैगाम देने वाले 

*    = सिकंदर जैसे कितने ही शक्तिशाली एवं महान राजे महाराजे आए और चले गए 
कितने ही पयाम बर - ख़ुदा का पैग़ाम लाने वाले - ईश्वरीय अर्थात धर्म का संदेश देने वाले भी संसार से चले गए 
लेकिन कभी दुनिया का कोई भी काम नहीं रुका 
संसार वैसे ही चलता रहा - और चलता रहेगा 

13 comments:

  1. कच दी मंडी च सच दा ग्राहक कोई कोई

    ReplyDelete
  2. Beautiful words💐

    ReplyDelete
  3. बहुत सटीक सच्चाई है जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद महात्मा बचित्र पाल जी 🙏🙏

      Delete
  4. चलती रहे जिंदगी 🌼🙏

    ReplyDelete
  5. Bahut hee Uttam aur sunder bhav wali Rachana ji .🙏

    ReplyDelete
  6. Excellent thoughts in the poetry 🙏🌹

    ReplyDelete
  7. Beautiful Poem with beautiful message 🙏🙏

    ReplyDelete
  8. Beautiful 👌👌🙏🙏

    ReplyDelete
  9. Beautifully put words and feelings 🙏🙏

    ReplyDelete
  10. Beautiful 🙏🙏

    ReplyDelete

Happy Thanksgiving थैंक्सगिविंग दिवस की शुभकामनाएँ

Thanks to the Almighty - the omnipresent Supreme Being,   who created the universe and everything in it for a purpose -  and gave us the int...