रे मन राम स्यों कर प्रीत
श्रवण गोविंद गुण सुनो अरु गाओ रसना गीत ||१ रहाउ ||
करि साध-संगत, सिमर माधो होहै पतित पुनीत
काल-ब्याल जिओ परियो डोले मुख पसारे मीत
आजकल फुनि तोहि ग्रसिहै समझ राखउ चीत
कहे 'नानक' राम भज ले जात अउसर बीत
(गुरु तेग बहादुर जी)
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हे मेरे मन, राम* अर्थात सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान प्रभु से प्रेम करो - उसकी आराधना करो -
कानों से गोविन्द - अर्थात सृष्टि के रचयिता की गौरवशाली स्तुति सुनो, और जिह्वा से उसके गीत गाओ।
साध संगत करो - संतों की पवित्र संगति में रहो और माधव अर्थात प्रिय प्रभु का सुमिरन करो जिस से पतित एवं पापी भी पवित्र हो जाते हैं।
हे मित्र - काल रुपी सर्प - अर्थात मौत मुंह पसार कर आस पास ही घूम रही है।
आज या कल, यह तुम्हें भी ग्रस लेगी - निगल लेगी।
(इस तथ्य को अच्छी तरह समझ कर हमेशा अपने चित्त में याद रखो।
नानक कहते हैं - राम नाम का भजन - ध्यान और जाप करते रहो
समय बीतता जा रहा है - कहीं ये अवसर हाथ से निकल न जाए !
(इसलिए देरी न करें।)
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* रमन्ते इति रामः - जो हर जगह रमा हुआ है - सर्वव्यापक है वही राम है
गोविन्द = गो +विन्द
गो अर्थात पृथ्वी अथवा सृष्टि +विन्द अर्थात कारण या रचयिता
गोविन्द = सृष्टि का कारण या रचयिता
माधो = मधु के समान मीठा प्रभु
रसना = जिह्वा, जीभ
काल-ब्याल = काल रुपी सर्प
अउसर = अवसर, समय, वक़्त
🙏🙏🙏🙏🙏👌
ReplyDeleteVery important message from Pavitar Gurbani 🙏🏿
ReplyDeleteThanks!
ReplyDeleteShukarana 🙏
ReplyDeleteThank you Rajanjee for such a beautiful explanation of this nice Shabad. You had taught me to sing this a few years ago 🙏
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