Sunday, May 14, 2023

मातृ दिवस - Mother's Day

प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार माता को व्यक्ति की प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण गुरु कहा गया है।
हमारे संस्कारों और शिष्टाचार का श्रेय माता को ही जाता है।
हमारे तौर-तरीके, शिष्टाचार और बर्ताव - हम अन्य लोगों के साथ कैसे व्यवहार करते हैं, यह सब बचपन से मिले हुए संस्कारों पर निर्भर करता है। 
हमारा उठना बैठना - बोलचाल, और व्यवहार हमारे जीवन के शुरुआती चरणों में मिले हुए संस्कारों का प्रतिबिंब होता है।
हर महान संत और गुरु की महानता के पीछे - महान वीरों और योद्धाओं की उपलब्धियों के पीछे - उनकी माताओं का हाथ दिखाई देता है।
अक़्सर उनकी सफलता के पीछे होती है उनकी माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका - उनकी बचपन में दी हुई शिक्षा एवं सिखलाई।

इन्सान अपने  प्रारंभिक जीवन में जो कुछ सीखता है वह हमेशा उसके दिल और दिमाग में अंकित रहता है और उसके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
जीवन भर उसका प्रभाव बना रहता है।
इसलिए, शास्त्र हमें बच्चों के मन में बचपन से ही उचित संस्कार डालने की प्रेरणा देते हैं ।
जैसा कि गुरु कबीर जी कहते हैं:
                     जननी जने तां भगत जन - कै दाता कै सूर
अर्थात माता को ऐसी संतान को जन्म देना चाहिए - या दूसरे शब्दों में, संतान को ऐसा बनाना चाहिए - ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह आगे चल कर भक्त - यानी एक सरल, विनम्र और आध्यात्मिक बने -
दाता - दयालु, उदार और दानी बने  
और सूर - अर्थात अटल अडिग और दृढ  - जो अपने सिद्धांतों का दृढ़ता से पालन कर सके और हमेशा सत्य पर क़ायम रह सके।  
                                          " राजन सचदेव "

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कामना रुपी अतृप्त अग्नि

                  आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा |                   कामरुपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ||                            ...