1
आख़िर दो दिन की बर्फ़बारी के बाद बर्फ गिरना बंद हो गया और धूप निकल आई।
खिड़की में से - बर्फ से ढके पेड़ और झाड़ियाँ बहुत सुंदर दिखाई दे रहे थे।
पूरा पिछवाड़ा ताजा बर्फ की सुंदर और चमकती हुई सफेद चादर से ढका हुआ था।
पांच वर्षीय बॉबी बाहर जाकर पिछवाड़े में बर्फ से खेलना चाहता था।
"मम्मी , मैं पिछवाड़े में खेलने जाऊं? "
नहीं - माँ ने कहा।
क्यों?
बाहर बहुत ठंड है।
"मम्मी .... मैं अपनी जैकेट - हैट और दस्ताने पहन के जाऊंगा"।
"मैंने कहा न - बाहर नहीं जाना।
पर क्यों?
क्योंकि मैंनें कहा है।
पर क्यों?
"मुझसे बहस मत करो - मैं तुम्हारी माँ हूँ।
वह अपना काम करती रही।
नन्हा बॉबी खुश नहीं था। वह गुस्से में हाथ पाँव पटकता रहा -
सिसकियां लेता रहा - रोता और शिकायत करता रहा।
इस सब के चलते माँ अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रही थी।
तो उसने बॉबी से कहा :
अच्छा ठीक है। तुम एक शर्त पर बाहर जा सकते हो।
क्या?
"अपनी जैकेट टोपी और दस्ताने पहनो।"
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ज़रा सोचिए - कि
बॉबी ने तो पहले ही कहा था - कि वह अपनी जैकेट, टोपी और दस्ताने पहन कर जाएगा।
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2
रीटा: - "मम्मी - आज रात के खाने के लिए पिज़्ज़ा मंगवा लें?"
माँ: "नहीं।
"क्यों?
"रोज़ बाहर का खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता।
"पर हम रोज़ थोड़े ही खाते हैं? हमें पिज्जा खाए तीन हफ्ते हो गए हैं।"
"मुझसे बहस मत करो।
वही खाओ जो मैं बनाती हूँ और मेज पर रख देती हूँ। "
अगले दिन……..
"रीटा - बेटा, आज खाना बनाने का मन नहीं कर रहा है।
चलो आज खाने के लिए पिज़्ज़ा ऑर्डर कर लेते हैं ”
"लेकिन कल रात आपने कहा था कि बाहर का खाना हमारे लिए अच्छा नहीं है।"
"मुझे पता है - लेकिन हमें पिज्जा खाए तीन हफ्ते हो चुके हैं।"
"यही तो कल मैंने कहा था"
"मुझसे बहस मत करो। मैं तुम्हारी माँ हूं।"
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ज़रा सोचें ………
क्या पहली कहानी में असल कारण केवल सर्दी ही था?
और दूसरी में असली कारण केवल यही था कि बाहर का खाना अच्छा नहीं होता?
या फिर असल बात कण्ट्रोल यानी नियंत्रण की है?
वास्तव में, अधिकांश समय - हर बात के पीछे कण्ट्रोल की भावना ही होती है।
सारे संसार में ऐसा ही देखने को मिलता है।
माता-पिता बच्चों के ऊपर कंट्रोल रखना कहते हैं - और बाद में, बच्चे माता-पिता के ऊपर।
पति पत्नि पर और पत्नी पति पर - शिक्षक छात्रों पर -
और नेता अनुयायियों पर -
अधिकारी अपने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर और मालिक अपने सेवादारों पर -
अर्थात हर व्यक्ति दूसरों पर अपना नियंत्रण रखना चाहता है - जहाँ भी और जितना भी सम्भव हो सके - अपना कण्ट्रोल रखना चाहता है।
और विडंबना यह है कि स्वयं कोई भी किसी के आधीन - और नियंत्रित होना नहीं चाहता।
एक दिन मैंने कहा-
मुझे लगता है कि जीवन की कहानी दरअसल नियंत्रण के बारे में ही है - मेरा कंट्रोल - मेरा नियंत्रण।
इसलिए - मैं भी कण्ट्रोल करना चाहता हूँ।
किसी ने पूछा - "आप किसे कण्ट्रोल करना चाहते हो ? "
मैंने कहा: "किसे नहीं... ये पूछो कि "क्या "?
मैं कंट्रोल करना चाहता हूँ अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर -
अपने विचारों और उदगारों पर -
अपनी आस्था - अपनी मान्यताओं एवं सिद्धांतों पर -
अपनी वाणी - अपने शब्दों और कर्मों पर।
जो मैं कहता हूं - और जो मैं जो करता हूं उस पर मेरा नियंत्रण हो -
वही अंततः मुक्ति अथवा मोक्ष है।
" राजन सचदेव "
🌼🌸🌺🙏
ReplyDeleteSo beautiful thoughts
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteAbsolutely right ji. Bahut hee uttam bhav ji. May we understand and follow. 🙏
ReplyDeleteVery thoughtful
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