दुनिया की भूल भुलैयां में हम अपना ठिकाना भूल गए
दोराहे पे उलझे ऐसे - मंज़िल का निशाना भूल गए
दोराहे पे उलझे ऐसे - मंज़िल का निशाना भूल गए
जब राज़ खुला, मालूम हुआ अब तक तो हम बेहोश ही थे
अब राज़ से वाक़िफ़ हो तो गए पर होश में आना भूल गए
आए थे जब दुनिया में - वो दिन है सब को याद मगर
इस फ़ानी दुनिया से आख़िर इक दिन है जाना भूल गए
है अजब मोहब्बत की दुनिया जो आए यहां उलझे ही रहे
या होश में आना भूल गए - या होश से जाना भूल गए
या होश में आना भूल गए - या होश से जाना भूल गए
इक रंग चढ़ा उन पर ऐसा फिर वो मयख़ाना भूल गए
' राजन सचदेव '
मख़मूर = नशे में चूर - ख़ुमारी में
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भावार्थ - सारांश
हम इस संसार और माया की भूल भुलैया में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि अपने जीवन के असल उद्देश्य को ही भूल जाते हैं।
सांसारिक जीवन और आध्यात्मिकता के बीच के दोराहे पर हम अक़्सर दुविधा में पड़ जाते हैं कि कौन सा रास्ता अपनाया जाए।
और इस दुविधा में पड़ कर हम अक्सर अपनी मंज़िल के निशान को भूल जाते हैं।
2
जब ज्ञान मिला तो पता चला कि अब तक तो हम अनजान ही थे।
अब जबकि हम सत्य को जान चुके हैं - लेकिन फिर भी हम ज्ञान के संदर्भ में नहीं सोचते
हम अभी भी कई प्रकार के अंधविश्वास में फंस जाते हैं।
हम एक प्रकार के कर्मकांड - भ्रमों और अंधविश्वास से तो बाहर निकले -
लेकिन फिर एक दूसरी तरह के कर्मकांड और अंधविश्वासों को अपना लिया।
हम अपने विचारों और दैनिक कार्यों में ज्ञान को लागू करना भूल जाते हैं।
सत्य ज्ञान का आधार लेकर सोचना भूल जाते हैं।
3.
जब हम इस दुनिया में आए थे - वो दिन - वो तारीख हम सब को याद है
और उसे हम जन्मदिन के रुप में मनाते भी हैं।
बल्कि आजकल वयोवृद्ध - बुज़ुर्गों के जन्म दिन तो ख़ास तौर पर बड़ी घूम धाम से मनाए जाते हैं।
सोचने की बात है कि एक ऐसी घटना को बड़ी ख़ुशी और बड़ी घूम धाम से मनाया जाता है जो अतीत में कभी हुई थी -
लेकिन भविष्य में एक घटना - जो अनिवार्य रुप से सबके साथ घटने वाली है - उस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता।
जन्म दिन के अवसर पर जश्न मनाने में कोई हर्ज़ नहीं है। मनाए जाने चाहिएं।
लेकिन साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि यह संसार नश्वर है और इस संसार में जीवन भी अस्थायी है
एक दिन हमें इस दुनिया से जाना होगा।
जब हमें इस दुनिया को छोड़ कर जाना ही है तो हम इतने मतभेद और भेदभाव क्यों पैदा करते हैं ?
यह घृणा - ये शत्रुता, और दुश्मनी क्यों है?
धोखा देकर और दूसरों को उनके अधिकार से वंचित करके इतनी दौलत जमा करने की कोशिश क्यों की जाती है?
औरों का हक़ छीन कर अपना घर भरने की कोशिश क्यों की जाती है?
जीवन का उत्सव मनाएं - लेकिन साथ ही इस संसार की नश्वरता को भी याद रखना चाहिए।
4.
प्रेम और अध्यात्म की दुनिया अद्भुत और निराली है।
इस रास्ते पर चलने वाले अक़्सर दुविधा में पड़ जाते हैं
क्योंकि ज्ञान तर्कसंगत और विश्लेषणात्मक सोच की मांग करता है -
जबकि रहस्यवाद एवं भक्ति के लिए विशुद्ध प्रेम और समर्पण की आवश्यकता होती है।
भक्ति और रहस्यवाद - तर्क और बुद्धि से परे है। वहां अक़्ल और सोच नहीं चलती।
हमारा मार्ग ज्ञान और भक्ति दोनों का योग है।
लेकिन दोनों को हर समय संतुलन में और उचित अनुपात में रखना कठिन हो जाता है ।
किसी जगह पर हमें ज्ञान और तर्क का उपयोग करने की आवश्यकता होती है
और कहीं हमें बुद्धि और अक़्ल को छोड़ने की ज़रुरत होती है।
कब और कहां तर्क और बुद्धि का इस्तेमाल करना है और कब नहीं -
यह जानने के लिए विवेक की आवश्यकता है।
5.
ध्यान और सुमिरन भी एक प्रकार का नशा है।
जो गहरे सुमिरन में मग्न और तल्लीन हो जाते हैं - वह सब कुछ भूल जाते हैं।
वह अपने आस पास के परिवेश और परिस्थितियों को - यहाँ तक कि स्वयं को भी भूल जाते हैं।
इसे नाम-ख़ुमारी कहा जाता है। जो किसी भी अन्य प्रकार के नशे की तुलना में अधिक आनंदमयी है।
नाम-ख़ुमारी असीम आनंद और शान्ति प्रदान करती है जो किसी अन्य नशे से प्राप्त नहीं हो सकती।
' राजन सचदेव '
Wah! Kya khub soorat shiksha di.🙏
ReplyDeleteUsha
Waah bahut sunder siksha hai ji🌹🌹🌹👏🏾👏🏾👏🏾
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