कुरुते गङ्गासागरगमनं व्रतपरिपालनमथवा दानम् ।
ज्ञानविहीनः सर्वमतेन भजति न मुक्तिं जन्मशतेन ॥ १७॥
(आदि शंकराचार्य - भज गोविंदम - 17)
शब्दार्थ :
चाहे गंगासागर इत्यादि तीर्थ स्थानों पर भ्रमण करते रहें
अथवा व्रत साधना एवं कर्मकाण्ड का पालन और दान करते रहें
ब्रह्म ज्ञान के बिना सौ जन्मों में भी मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती।
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भावार्थ -
उचित दिशा और अनुशासन का पालन किए बिना किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करना कठिन है।
आध्यात्मिकता एवं भक्ति के मार्ग में अनुशासन और नियमितता बनाए रखने के लिए तीर्थयात्रा, उपवास, दान और कर्मकांड इत्यादि कुछ निश्चित अनुष्ठानों का पालन करने के लिए कहा जाता है।
लेकिन अनुशासन और अभ्यास से पहले उस विषय अथवा कर्म का ज्ञान होना अत्यावश्यक है।
कोई भी काम करने से पहले उस काम की जानकारी होना ज़रुरी है।
इसी प्रकार मोक्ष प्राप्ति के लिए भी ब्रह्मज्ञान की आवश्यकता है।
ज्ञान के बिना कोई भी कर्मकांड लाभकारी नहीं हो सकता।
आदि शंकराचार्य कहते हैं कि धर्म ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार -
ब्रह्म ज्ञान के बिना मुक्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती - सौ जन्मों में भी नहीं।
ज्ञान प्राप्ति के बाद अनुशासित और नियमित रुप से भक्ति एवं सुमिरन इत्यादि करना ही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन माना गया है।
" राजन सचदेव "
uttam bachan ji. 🙏
ReplyDeleteGratitude 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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