सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ
कितना बड़ा मज़ाक़ हुआ रौशनी के साथ
वसीम बरेलवी
कभी कभी रौशनी होने के बाद भी हम अंधेरों की तरफ भागते रहते हैं - अंधेरों से ही हाथ मिलाते रहते हैं।
कितने दुर्भाग्य की बात है कि ज्ञान के प्रकाश के बावजूद भी हम अक़सर भ्रम के अंधेरों में भटक जाते हैं
अंध विश्वास में फंस जाते हैं और उसी में डूबे रहते हैं।
अविनाशी के ज्ञान के बाद भी हम नाशवान वस्तुओं में आसक्त रहें - नाशवान के साथ ही जुड़े रहें -
ईश्वर को पा कर भी माया में ही उलझे रहें -
तो ये ज्ञान की रौशनी के साथ मज़ाक़ ही होगा।
तीरगी = अँधेरा
Satbachan ji
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