लेकिन उसे महसूस करने और जीवन का अंग बनाने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है।
और अनुभव काम करने से आता है - सिर्फ़ पढ़ने या सुनने से नहीं।
पथ की जानकारी से नहीं बल्कि पथ पर चलने से ही उसका अनुभव मिलता है।
इसलिए चलना - और चलते रहना ज़रुरी है।
लेकिन यह भी याद रहे कि जाना कहाँ है - किस रास्ते से - किस ओर - किस दिशा की तरफ चलना है।
मंज़िल तक पहुँचने के लिए रास्ते और दिशा का सही ज्ञान होना भी आवश्यक है।
ग़लत रास्ते पर चलने से मंज़िल नहीं मिलती - बल्कि हम मंज़िल से दूर निकल जाते हैं ।
यदि आध्यात्मिकता एवं आत्मिक शांति हमारा लक्ष्य है तो हमारी सोच भी आत्मिक स्तर पर होनी चाहिए
- न कि शारीरक और सांसारिक स्तर पर।
शरीरों से ऊपर उठ कर ही हम आध्यात्मिकता के आकाश को छू पाएंगे - अन्यथा नहीं।
' राजन सचदेव '
' राजन सचदेव '
Very very true🙏
ReplyDeleteTrue
ReplyDeleteVery very nice💐💐🙏🙏
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