Tuesday, May 2, 2023

धीराणां निश्चलं मन: - निश्चल एवं स्थिर मन

               चलन्तु गिरय: कामं युगान्त  पवनाहता: 
               कृच्छेरपी न चलत्येव धीराणां निश्चलं मन: 
                                               (सुभाषितम)

युगान्त कालीन तेज वायु के झोंकों से पर्वत भले ही चलने लगें - अर्थात हिल जाएं 
परन्तु ज्ञानी एवं धैर्यवान व्यक्तियों के निश्चल एवं स्थिर मन कठिन परिस्थितियों में भी नहीं डोलते।
वह मुश्किलों में घबराते नहीं - 
संकट के समय में भी दृढ़ता के साथ सत्य मार्ग पर डटे रहते हैं और बिना डगमगाए आगे बढ़ते चले जाते हैं। 

4 comments:

  1. Absolutely true. This is ultimate stage of mind of a true yogi

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  2. तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।
    सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।

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