चलन्तु गिरय: कामं युगान्त पवनाहता:
कृच्छेरपी न चलत्येव धीराणां निश्चलं मन:
(सुभाषितम)
युगान्त कालीन तेज वायु के झोंकों से पर्वत भले ही चलने लगें - अर्थात हिल जाएं
परन्तु ज्ञानी एवं धैर्यवान व्यक्तियों के निश्चल एवं स्थिर मन कठिन परिस्थितियों में भी नहीं डोलते।
वह मुश्किलों में घबराते नहीं -
संकट के समय में भी दृढ़ता के साथ सत्य मार्ग पर डटे रहते हैं और बिना डगमगाए आगे बढ़ते चले जाते हैं।
🙏🏻💕🙏🏻
ReplyDeleteThat’s True
ReplyDeleteAbsolutely true. This is ultimate stage of mind of a true yogi
ReplyDeleteतन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।
ReplyDeleteसहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।