वस्ल का आसार नज़र आता है
सामने दिलदार नज़र आता है
लगता है मिल जाएंगी अब मंज़िलें
रास्ता हमवार नज़र आता है
रुप रंग आकार से मन उठ गया
जब से निराकार नज़र आता है
अज़मतों और शोहरतों का शोर गुल
अब ये सब बेकार नज़र आता है
हो अगर बीनाई आँखों में तो रब
हर शै में साकार नज़र आता है
ढूढंता है दिल सहारा जब कोई
इक यही हर बार नज़र आता है
मौत का फिर डर नहीं 'राजन ' उसे
जिस को प्राण-आधार नज़र आता है
'राजन सचदेव '
वस्ल = मिलन, मिलाप
हमवार = समतल,
अज़मत = इज़्ज़त ,आदर,मान-सत्कार
बीनाई = नेत्र ज्योति, देखने की दृष्टि, आँख की रौशनी, नज़र vision, sight
यही = निरंकार ईश्वर की ओर संकेत अथवा इशारा
Absolute truth 👏
ReplyDeleteहक़ीक़त का बयान है। 👏👏
ReplyDeleteSukhdev Chicago
So Beautiful poem❤️🙏🏼
ReplyDeleteUltimate ji
ReplyDeleteKundan Gauba
Very good poem 👌
ReplyDeleteBeautiful 🌼
ReplyDeleteIt’s all about ‘Binaie’ in the eyes. Thanks
ReplyDelete👍👍👌🏻very nice poem
ReplyDeleteBahut hee sunder rachna. Puran gursikhi bhav ji.🙏
ReplyDeleteWaah Jì Beautiful experience Jì .. 🙏🙏
ReplyDeleteBahut khoob uncle ji
ReplyDeleteWah Wah Wah ji wah
ReplyDeleteVery very touchy Bhai sahib ji 🤲🤲🙏🏻🙏🏻🙏🏻💕
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