Thursday, May 25, 2023

वस्ल का आसार नज़र आता है

वस्ल का आसार नज़र आता है 
सामने दिलदार नज़र आता है 

लगता है मिल जाएंगी अब मंज़िलें 
रास्ता हमवार नज़र आता है 

रुप रंग आकार से मन उठ गया 
जब से निराकार नज़र आता है 

अज़मतों और शोहरतों का शोर गुल 
अब ये सब बेकार नज़र आता है 

हो अगर बीनाई आँखों में तो रब         
हर शै में साकार नज़र आता है 

ढूढंता है दिल सहारा जब कोई 
इक यही हर बार नज़र आता है  

मौत का फिर डर नहीं 'राजन ' उसे  
जिस को प्राण-आधार नज़र आता है 
                        'राजन सचदेव '

वस्ल      =  मिलन, मिलाप 
हमवार   =  समतल, 
अज़मत   = इज़्ज़त ,आदर,मान-सत्कार 
बीनाई =   नेत्र ज्योति, देखने की दृष्टि, आँख की रौशनी, नज़र   vision, sight
यही        =  निरंकार ईश्वर की ओर संकेत अथवा इशारा 

13 comments:

  1. हक़ीक़त का बयान है। 👏👏
    Sukhdev Chicago

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  2. So Beautiful poem❤️🙏🏼

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  3. Ultimate ji
    Kundan Gauba

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  4. Very good poem 👌

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  5. It’s all about ‘Binaie’ in the eyes. Thanks

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  6. 👍👍👌🏻very nice poem

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  7. Bahut hee sunder rachna. Puran gursikhi bhav ji.🙏

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  8. Waah Jì Beautiful experience Jì .. 🙏🙏

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  9. Bahut khoob uncle ji

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  10. Wah Wah Wah ji wah

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  11. Very very touchy Bhai sahib ji 🤲🤲🙏🏻🙏🏻🙏🏻💕

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