Monday, March 13, 2023

न हम क़तरा समझते हैं न दरिया समझते हैं

              ये हस्ती नीस्ती सब मौज-ख़ेज़ी है मोहब्बत की
             न हम क़तरा समझते हैं न हम दरिया समझते हैं
                                                          'फ़िराक़ गोरखपुरी '

अस्तित्व और अनस्तित्व की बातें मात्र हमारे प्रेम और उत्कंठा की लहरें हैं 
हमारी जिज्ञासा - संसार की हर चीज़ - प्रकृति के हर रहस्य को समझने की लालसा।
लेकिन सच तो यह है कि हम न तो अब तक बूंद को समझ पाए हैं और न ही सागर को।

प्रारम्भ से ही संसार भर में आत्मा एवं परमात्मा के आस्तित्व की चर्चा और खोज होती रही है। 
हर धर्म मज़हब पंथ अथवा समुदाय में इस विषय पर चर्चा हुई है।
प्रत्येक धर्म ग्रन्थ और शास्त्र में इनका उल्लेख मिलता है। 
और वेद शास्त्र एवं हर धर्म ग्रन्थ ने इस विषय पर विस्तार से लिखा है और समझाने का यत्न किया है 
लेकिन अंत में सब ने अलख, अगोचर और अगम्य  ही कहा है - अर्थात इन्हें समझना असम्भव है। 
वेदों और उपनिषदों ने नेति नेति कहा। 
कबीर जी कहते हैं -
               सनकादिक नारद मुनि सेखा - तिन भी तन महि मन नहीं पेखा 
अर्थात सनकादिक नारद और शेष इत्यादि बड़े बड़े ऋषि मुनि भी तन में आत्मा को नहीं देख पाए -
 इसे समझ नहीं पाए। 

अकाल उस्तति में  गुरु गोबिंद सिंह लिखते हैं - 
                 "बेद कतेब न भेद लखियो सभ हारि परे  हरि हाथ न आयो"  
अर्थात चार वेद और चार किताबें  - यानि कुरान, अंजील, तुरैत और ज़बूर भी इसका भेद न पा सके। 
(अंजील = बाइबिल, तुरैत और ज़बूर = यहूदियों के धर्म ग्रन्थ )

गुरबाणी में जगह जगह पर इसे अगम, अगोचर अलख और अपार कह कर सम्बोधन किया है। 
और अवतार बानी में भी पहले ही शब्द में इसे  "मन बुद्धि ते अक़्लों बाहरे" कहा है। 
अर्थात सब ने इन्हें मन और बुद्धि की समझ से बाहर ही कहा है। 

सूफियों ने परमात्मा को सागर और आत्मा को उस महासगार का एक क़तरा - एक बूँद कहा है - 
जो वहद-हू ला-शरीक है - लाफ़ानी है लासानी है और बयान से बाहर है।  
परमात्मा महासागर है और आत्मा एक बूँद  - और दोनों ही समझ से बाहर हैं। 
हम अक्सर अस्तित्व और अनस्तित्व के रहस्य के बारे में चर्चा तो करते हैं - 
लेकिन न तो हमने अब तक बूंद को समझा है और न ही सागर को।
                                          " राजन सचदेव "
 नोट :
अनुवाद में प्रस्तुत विचार मेरे निजी विचार हैं - और हो सकता है कि ये शायर की मूल भावनाओं को प्रतिबिंबित न करें। 

7 comments:

  1. Bahut khub 🙏🙏🙏👏👏

    ReplyDelete
  2. Rajan ji you are gifted with knowledge and your ability to express is amazing.
    Truly you are a blessing for all of us.
    Dr. Jagdish S

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thank you so much Doctor sahib - you are always so kind - ज़र्रा नवाज़ी के लिए शुक्रिया 🙏🙏

      Delete
  3. Bahut khub 🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹🌹

    ReplyDelete
  4. और क्या समझेंगे अब, यही काफी है
    ये महासागर है,हम आत्माएं इसकी बूंद हैं। 🌹❣

    ReplyDelete

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...