Sunday, March 5, 2023

न सोचा न समझा न सीखा न जाना

न सोचा न समझा न सीखा न जाना 
मुझे आ गया ख़ुद-ब-ख़ुद दिल लगाना 

ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना 
सिमट कर कहीं आ न जाए ज़माना 

ज़बाँ पर लगी हैं वफ़ाओं की मोहरें 
ख़मोशी मिरी कह रही है फ़साना 

गुलों तक रसाई तो आसाँ है लेकिन 
है दुश्वार काँटों से दामन बचाना 

करो लाख तुम मातम-ए-नौजवानी 
'क़दीर' अब न आएगा गुज़रा ज़माना 
                 || क़दीर लखनवी ||

रसाई   =   पहुँच, जान पहचान, रिश्ता नाता, मेल मिलाप 

टिप्पणी - भावार्थ:
प्रेम एक स्वाभाविक भावना है जिसे न सीखा जाता है और न ही दूसरों द्वारा सिखाया, समझाया या मजबूर किया जा सकता है।
प्रेम के उदगार - प्रेम की भावना - एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है जो मन की अवस्था पर निर्भर करती है।
जब हम अपने विचारों और धारणाओं के क्षितिज को विस्तृत कर लेते हैं तो स्वाभाविक रुप से ही सभी के प्रति प्रेम उत्पन्न होने लगता है। 

अपना सौंदर्य - अपनी प्रतिभा - अपने कौशल को सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद ही दूसरों को दिखाएं। 
हो सकता है कि पूरी दुनिया सिकुड़ कर आपके पास आ जाए।

इस शेर को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों अर्थों में देखा जा सकता है।
पूरी दुनिया आपके कौशल की सराहना करने और आपसे सीखने के लिए आ सकती है।
क्या आप अपने ज्ञान और प्रतिभा को सबके साथ साझा करने को तैयार हैं?

दूसरी तरफ -  हो सकता है कि लोग आपसे ईर्ष्या करने लगें और आपको रोकने की - आपके मार्ग में बाधा डालने की कोशिश करें। इसलिए सावधान रहें।
अर्थात दोनों ही स्थितियों में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

ज़ुबान पर तो वफादारी और सम्मान की मुहर लगी है।
और ख़ामोशी ही अब कहानी कह रही है।

कभी-कभी मन की अवस्था का प्रदर्शन वाणी और शब्दों से अधिक खमोशी अथवा मौन से हो जाता है। 

फूलों तक पहुंचना तो आसान है - लेकिन दामन को कांटों से बचाना मुश्किल है।
अगर हम फूल पाना चाहते हैं तो हो सकता है कि हम कांटों से न बच पाएं।
उपलब्धि के मार्ग में बाधाएँ और कठिनाइयाँ तो आएँगी। 
लोग भी मार्ग में कांटे बिछा सकते हैं। 
लेकिन अगर हम बाधाओं से न घबराएं  - अपने मार्ग पर विश्वास और अडिगता से आगे बढ़ते रहें - 
तो वांछित लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन नहीं होगा।

जवानी के लिए कितना भी मातम किया जाए - चाहे कितनी भी कोशिश की जाए - 
यह कभी वापस नहीं आएगी। 
जो बीत गया सो बीत गया  - गुज़रा हुआ समय कभी वापिस नहीं आता। 
इसलिए, जो नहीं किया - जो नहीं हो सका या हासिल नहीं किया जा सका -
उस के लिए पश्चाताप करते रहने की  बजाय हमें वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए।  
वर्तमान का सही उपयोग करके भविष्य को संवारने का यत्न करना चाहिए।                            
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 नोट: ये टिप्पणी मेरे निजी विचार हैं - हो सकता है कि ये विचार शायर या कवि की भावनाओं का प्रतिनिधित्व न करते हों।  

1 comment:

  1. No nicely explained with positivity, only a true saint can think like this .

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