मोटी माया सब तजें झीनी तजी न जाए
पीर पैगंबर औलिया, झीनी सबको खाए
माया तजी तो क्या भया जे मान तजा ना जाय
मान मुनि मुनिवर गले - मान सभी को खाय
सतगुरु कबीर जी की बातें बहुत गहरी और सत्यपूर्ण होती हैं।
वे निडरता के साथ - बिना किसी लाग-डाट के सच्ची बात कहने से संकोच नहीं करते
और अक़्सर ऐसी जगह चोट करते हैं जहां हमारी सोच पहुँच भी नहीं सकती। जिसे हम सोच भी नहीं सकते।
ऊपर लिखित दोहों में कबीर जी फरमाते हैं कि -
मोटी माया अर्थात घर-बार और धन-दौलत का त्याग करना कठिन नहीं है।
बहुत से लोग ऐसा कर सकते हैं -
लेकिन झीनी या सूक्ष्म माया अर्थात अहंकार का त्याग करना आसान नहीं है -
ये बहुत कठिन है।
यहां तक कि बड़े बड़े पीर, पैग़ंबर,औलिया, साधु संत,और ऋषि मुनि भी अहंकार एवं अहम भाव का त्याग नहीं कर पाए।
अहंकार रुपी सर्प सब को डस लेता है - इसका विष सभी को खा जाता है।
इसीलिए सभी ग्रंथ - सभी गुरु एवं संतजन बार बार अहम् से - अहंकार से बचने की चेतावनी देते हैं।
साधो मन का मान त्यागो
काम क्रोध संगत दुर्जन की ता ते अहिनिस भागो
(गुरु तेह बहादुर जी)
पल पल याद करो इस रब नूं मान दा भांडा चूर करो
सिमर सिमर के एसे रब नूं चिंता मन दी दूर करो
साध चरण ते रख के सर नूं दूर दिलों हंकार करो
(अवतार बानी - 76)
मैं मेरी नूं मार के - निक्की निक्की कुट
भरे खज़ाने साहिब दे - गौरा हो के लुट
अर्थात धीरे धीरे - दिन-ब-दिन - थोड़ा थोड़ा करके ही सही - मैं मेरी को मारने - अहम भाव का त्याग करने का अभ्यास करते रहें।
अहंकार जितना कम होगा - जीवन में उतनी ही अधिक शांति होगी।
" राजन सचदेव "
🙏🙏👌👏❤️
ReplyDeleteFrom Sukhdev Chicago 🙏
ReplyDeleteAbsolutely right ji. Bahut hee uttam bachan han ji .🙏
ReplyDeleteVery nice ji 🙏
ReplyDeleteBahut hee uttam bachan ji absolutely right 🌹🌹👌👌
ReplyDeleteAtti uttam!
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