पांच तत्व का बना तम्बूरा - तार लगा नौ तूरे का
ऐंठत तार मरोड़त खूँटी निकसत राग हज़ूरे का
टूटा तार बिखर गई खूँटी हो गया धूर मधूरे का
या देहि का गर्व न कीजे उड़ गया हंस तम्बूरे का
कहे कबीर सुनो भई साधो अगम पंथ इक सूरे का
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कबीर जी के अधिकतर पद अथवा शब्द साधो के सम्बोधन से शुरु होते हैं और 'सुनो भाई साधो' से समाप्त होते हैं।
साधु एक संस्कृत शब्द है जिस के शाब्दिक अर्थ हैं - अच्छा, सज्जन, भद्र, उत्कृष्ट, उत्तम, सम्माननीय, पवित्र, कुलीन, ऋषि अथवा संत इत्यादि।
अर्थात कबीर जी हर व्यक्ति को साधु - अर्थात भद्र एवं सम्माननीय और भाई मानते हैं - उनकी दृष्टि में सब सज्जन हैं - कोई छोटा, बुरा या नीचा नहीं है।
वो जो भी कहते हैं वो किसी को अपने से तुच्छ समझ कर नहीं बल्कि अपने भाई बहन मान कर कहते हैं। उनकी भाषा में आज्ञा नहीं - सनेह और सदभाव है। उनके गीतों में प्रेम और सबके भले की कामना का भाव झलकता है।
ऊपर लिखे पद का भावार्थ
और अंत में ये चेतावनी भी दे रहे हैं कि हे भाई - यह मार्ग अगम है - दुसाध्य है - बहुत कठिन है।
इस अगम पंथ पर कोई शूरवीर - साहसी एवं दृढ निश्चय वाला - पक्के इरादे वाला हिम्मती व्यक्ति ही चल सकता है।
कबीर जी फरमा रहे हैं कि हे साधो - हे सज्जनो - ये तन एक तम्बूरे (तानपुरे) की तरह है। जिस की संरचना - जिस का ढाँचा पांच तत्व से बना है और उस पर नौ प्रतिध्वनियों - नव रस अर्थात नव प्रवृत्तियों के तार लगे हैं।
खूंटियों को मरोड़ कर तारों को कस लिया जाए तो इसमें से हुज़ूर का राग - प्रभु का गीत-संगीत निकलने लगेगा।
अर्थात - आत्मा का गीत सुनने के लिए - परमात्मा रुपी मधुर संगीत का आनंद लेने के लिए इंद्रियों रुपी खूंटियों को मरोड़ कर - उनकी दिशा बदल कर - विचारों और भावनाओं की तारों को कसना अथवा नियंत्रित रखना पड़ता है।
और जब तार टूट गए, खूंटियाँ बिखर गईं, तो जीवन की सब मधुरता - सारी मिठास धूल में मिल जाएगी। मिट्टी मिट्टी में मिल जाएगी - माटी से बना शरीर फिर माटी में ही मिल जाएगा।
ये देह - यह शरीर तो नश्वर है - नाशवान है - इस पर इतना गर्व - इतना अभिमान मत करो।
एक दिन जब आत्मा रुपी हंस इस तम्बूरे से निकल कर उड़ गया तो ये तम्बूरा - ये शरीर बेकार हो जाएगा - फिर इस में से कोई राग - कोई गीत नहीं निकल पाएगा।
इसलिए जब तक शरीर में प्राण हैं - समय रहते इस मानव जन्म का लाभ उठा लो।
कहीं माया जाल में फँस कर इस उत्तम जन्म को बेकार के कामों में न गंवा लेना।
स्वयं को पहचानो - और इस मानव जन्म को सुंदर, सफल और आनंदमयी बनाओ।
और अंत में ये चेतावनी भी दे रहे हैं कि हे भाई - यह मार्ग अगम है - दुसाध्य है - बहुत कठिन है।
इस अगम पंथ पर कोई शूरवीर - साहसी एवं दृढ निश्चय वाला - पक्के इरादे वाला हिम्मती व्यक्ति ही चल सकता है।
" राजन सचदेव "
👌👌very nice ji
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