Friday, March 3, 2023

यक ज़माना सोहबते बा औलिया

                       यक ज़माना सोहबते बा औलिया 
                    बेहतर अज़ सद साला ता'अत बे रिया 
                                           ~ हज़रत रुमी ~

              یک زمانہ صحبت -ے- با -اولیا
               بہتر از صد سلا طاعت بے ریا
                                        مولانا رومی

अर्थात - 
औलिया या ज्ञानी की सोहबत में बिताया गया एक पल
सौ साल अकेले बैठ कर इबादत करने से बेहतर है।
                                                  
भावार्थ - 
 किसी औलिया - पीर और मुरशिद की सोहबत - किसी गुरु एवं ज्ञानी व्यक्ति के साथ थोड़ी देर के लिए की गई संगत भी सौ साल तक अकेले कर्मकांड अथवा इबादत करने से बेहतर है - अपने आप ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश से बेहतर है।

विचार करें तो यह बात जीवन के हर क्षेत्र में ही सत्य है।  
हम किसी भी विषय को सीखना चाहें तो उस विषय के किसी जानकार को ढूँढ़ते हैं जो उस विषय को अच्छी तरह जानता हो - और हमें समझा सकता हो। 
जिस  बात को अपने आप - बिना किसी की सहायता के जानने के लिए हमें बहुत समय लग सकता है - यहां तक कि  सालों-साल भी लग सकते हैं - उसे एक जानकार हमें कुछ ही देर में समझा सकता है। 

अध्यात्म के विषय में भी ऐसा ही है।
यदि हम आत्मज्ञान चाहते हैं - सत्य को जानने का प्रयास कर रहे हैं - तो बेहतर होगा कि किसी ज्ञानी व्यक्ति को खोजें और कुछ समय उनके साथ व्यतीत करें।  
ज्ञानी जनों के साथ व्यक्तिगत आधार पर चर्चा करने से हम ज्ञान को जल्दी और अधिक स्पष्ट रुप से समझ सकते हैं। 
जो आध्यात्मिक मार्ग पर हम से पहले चल चुके हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं उन लोगों के अनुभव से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। 

एक वैज्ञानिक अगर पहले से की जा चुकी हर खोज को अपने आप नए सिरे से खोजने की कोशिश करे तो पूरा जीवन लग सकता है। 
लेकिन पूर्व-वैज्ञानिकों अथवा ज्ञानी जनों के साथ मिल कर पहले हो चुकी हर खोज को अल्पकाल में ही समझ कर वह आगे रिसर्च कर सकता है - आगे बढ़ सकता है। 
इस से समय भी बचता है और अनावश्यक प्रयास भी। 
हज़रत रुमी के अनुसार, ज्ञानी अथवा गुरु के साथ बैठ कर कुछ सीखने और समझने के लिए बिताया गया एक एक पल भी व्यक्तिगत अभ्यास के सौ वर्षों से बेहतर हो सकता है। 
                                                               " राजन सचदेव "

नोट: कुछ लोगों का मानना है कि ऊपर लिखित फ़ारसी का शेर हज़रत रुमी का नहीं बल्कि उनके पीर अथवा गुरु शम्स तबरेज़ी का लिखा हुआ है। 

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