सबक़ उम्र-ए-रवाँ का दिल-नशीं होने नहीं पाता
हमेशा भूलते जाते हैं जो कुछ याद करते हैं
न जानी क़द्र तेरी उम्र-ए-रफ़्ता हम ने कॉलेज में
निकल आते हैं आँसू अब तुझे जब याद करते हैं
दिल-ए-नाशाद रोता है ज़बाँ उफ़ कर नहीं सकती
कोई सुनता नहीं यूँ बे-नवा फ़रियाद करते हैं
अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
ज़माने का मोअल्लिम इम्तिहाँ उन का नहीं करता
जो आँखें खोल कर ये दर्स-ए-हस्ती याद करते हैं
" ब्रिज नारायण चकबस्त "
उम्र-ए-रवाँ = बढ़ती हुई उम्र
उम्र-ए-रफ़्ता = बीती हुई ज़िंदगी
बे-नवा = बे-आवाज़
मोअल्लिम = उस्ताद - आलिम
दर्स-ए-हस्ती - हस्ती, आस्तित्व जीवन का सबक़
बढ़ती हुई उम्र के साथ ज़िंदगी हमें कितना कुछ सिखाती है।
पल पल पर कुछ नया सीखने को मिलता है - लेकिन दिल में टिकता नहीं हैं।
वो हमारी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं बन पाता।
चाह कर भी याद नहीं रख पाते - जो याद रखना चाहते हैं वो भूल जाता है।
जवानी में - स्कूल और कॉलेज के ज़माने में समय की क़ीमत नहीं जानी।
अक़्सर बहुत से लोग जवानी में वक़्त की क़दर नहीं करते
और फिर समय निकल जाने के बाद पछताते हैं - रोते हैं -
लेकिन फिर वो समय हाथ नहीं आता।
उदास दिल रोता है - लेकिन ज़ुबां कुछ कह नहीं पाती
बे-आवाज़, बिना शब्दों की फ़रयाद कोई सुन नहीं पाता
अदब और आदर-सत्कार - शिक्षा एवं ज्ञान के जौहर हैं - हीरे हैं।
नम्रता जवानी का ज़ेवर है।
वो ज्ञान बेकार है जिसमे नम्रता का भाव नहीं है।
नम्रता से ही ज्ञान चमकता है और दूसरों को रौशनी प्रदान कर सकता है।
असली शागिर्द - अच्छा विद्यार्थी वही है जो अपने उस्तादों और गुरुजनों की सेवा - ख़िदमत और आदर-सत्कार करता है।
हर व्यक्ति अपने जीवन में बहुत से लोगों से - बहुत से उस्ताद और गुरुजनों से बहुत कुछ सीखता है।
लेकिन कुछ समय के बाद अक़्सर सब लोग उन को भूल जाते हैं।
लेकिन अच्छे लोग हमेशा उन्हें याद रखते हैं -
अच्छे लोगों का ये गुण है कि जिन से कभी कुछ सीखा हो, वो हमेशा उनका मान और सत्कार करते हैं।
उन्हें भूलते नहीं।
जो जीवन के इन मूल्यों को समझते हैं और याद रखते हैं -
जो अपनी आँखें खुली रखते हैं - वो जीवन में कभी धोखा नहीं खाते।
BAHUT BAHUT BAHUT HI SUNDER BHAV IZHAR KIYE HAIN
ReplyDeleteबहुत सुंदर व्याख्या जी 🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteBahut hee sunder vacahn han-- jindgi di asliat hay.🙏
ReplyDeleteAmazing
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