Sunday, March 12, 2023

परखने में जल्दबाजी न करें

कभी किसी को परखने में जल्दबाजी न करें। 
क्योंकि हम लोगों को केवल उनके बाहरी रुप से ही देख सकते हैं - सिर्फ उनकी प्रस्तुतिकरण और उनके प्रदर्शन से - 
अर्थात जिस ढंग से वो अपने आप को हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं हम उन्हें वैसा ही देखते और समझते हैं। 

लेकिन वास्तविकता हमेशा वैसी ही नहीं होती।
अमीर लोगों - राजाओं, रानियों और अरबपतियों के पास वह सब कुछ होता है जो हरेक व्यक्ति अपने जीवन में पाना चाहता है - पाने की इच्छा रखता है। 
लेकिन अक़्सर ऐसा देखने में आता है कि फिर भी वे लोग अंदर से खुश और संतुष्ट नहीं होते।
दूसरी ओर, कुछ गरीब और सामान्य से दिखने वाले लोग भी अपने मन में काफी प्रसन्न और संतुष्ट हो सकते हैं।

जो उत्कृष्ट वक्ता हैं - जो धाराप्रवाह, आकर्षक और सुरुचिपूर्ण ढंग से बोलते हैं - ज़रुरी नहीं कि वे अपने विषय के बारे में सब कुछ जानते ही हों - या जो वो कहते हैं वो उनका अपना व्यक्तिगत अनुभव भी हो।
और जो अकेले में मौन यानि ख़ामोश बैठे रहते हैं, ये ज़रुरी नहीं कि वे नासमझ - अनभिज्ञ या अज्ञानी ही होंगे।
हो सकता है कि वास्तव में वे अधिक विद्वान और समझदार हों  - लेकिन बिना किसी कारण के ही बोलते रहने में अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करना चाहते।

जो हमें  हमेशा  मुस्कुराते हुए दिखाई देते हैं -   
जिन्हे देख कर लगता है कि वह बहुत प्रसन्न और आनंदित हैं - 
हम सोचते हैं कि उनका जीवन तो सदा आनंद से भरा हुआ होगा। 
लेकिन हो सकता है कि वह वास्तव में प्रसन्नचित्त - आनंदित और संतुष्ट न हों।
हो सकता है कि वे अंदर से काफी बेचैन और उत्तेजित हों। 

और दूसरी तरफ - जो इधर-उधर भटकते हुए नजर आते हैं, ये ज़रुरी नहीं कि वे खोए हुए हैं या अपने मार्ग से भटके हुए हैं। 
शायद वे नए अनुभवों की तलाश में जगह जगह पर घूम रहे हों  - 
नई नई चीजें देखने और नए नए लोगों से मिलने के लिए -  
हर मिलने वाले नए व्यक्ति से और हर नई घटना से कुछ सीखने के लिए।  

जैसा कि हजरत रुमी ने कहा था - 
                     न मन बेहूदा गिरदे कूचा-ओ-बाजार मी गिरदम 
                     मज़ाक़-ए-आशिकी दारम पए दीदार मी गिरदम 

अर्थात यह न समझो कि मैं व्यर्थ ही गलियों और बाजारों में भटक रहा हूँ - फ़िज़ूल आवारागर्दी कर रहा हूँ ।
मैं तो अपने मालिक के गहरे प्रेम में डूबा हुआ अपने महबूब - अपने प्यारे की एक झलक पाने के लिए जगह-जगह घूम रहा हूँ।

इसलिए, किसी को भी परखने में कभी जल्दबाजी न करें।
हम जो देखते और समझते हैं - वास्तविकता उससे बहुत भिन्न हो सकती है।
                                          " राजन सचदेव "

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