Friday, March 17, 2023

ध्यान एवं सुमिरन

कहा जाता है कि ध्यान या सुमिरन की कुंजी है एकाग्रता - 
अर्थात किसी एक जगह - एक केंद्र बिंदु अथवा किसी एक प्वाइंट पर ध्यान केंद्रित करना।
तो सवाल उठता है कि:
हमारे ध्यान का केंद्र क्या होना चाहिए - किस पर ध्यान केंद्रित करें और कैसे करें।

हर परिप्रेक्ष्य - हरेक विचारधारा -  विश्वासों और अवधारणाओं का कोई न कोई केंद्र होता है और हमारे विचार हमेशा उसी केंद्र-बिंदु इर्द गिर्द ही घूमते रहते हैं। वह केंद्र ही हमारे हर कर्म और लक्ष्य का आधार होता है - वही हर चीज का सार है।
और जैसे एक निश्चित बिंदु अथवा प्वाइंट हमें अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए सही दिशा में बढ़ने और नेविगेट करने में मदद करता है, वैसे ही हमारा दृष्टिकोण हमारे लक्ष्य को निर्धारित करता है और एकाग्रता उस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करती है।
जैसे अपने विषय का सही ज्ञान प्राप्त करने और परीक्षा में पास होने के लिए एक विद्यार्थी को अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है।
एक व्यापारी को अपने व्यवसाय को फलने-फूलने और बेहतर बनाने के लिए अपने काम पर ध्यान देने की ज़रुरत होती है।
वैसे ही जीवन के किसी भी क्षेत्र में, अपनी रुचि के अनुसार किसी एक काम पर ध्यान केंद्रित करके हम वांछित परिणाम को जल्दी प्राप्त कर सकते हैं।

लेकिन आमतौर पर, हमारा मन रुचियों और आकर्षणों के विस्तृत क्षेत्र में फैला होता है। हमारे विचार चारों तरफ बिखरे रहते हैं। 
जो कुछ भी सामने आता है - जो कुछ भी दिखाई देता है - मन उसकी तरफ आकर्षित हो जाता है - उसी तरफ खिंच जाता है। 
अक़्सर हम आसानी से दूसरों की बातों से प्रभावित हो कर विचलित भी हो जाते हैं। हमारी ऊर्जा अव्यवस्थित हो कर बिखर जाती है।
हम भ्रमित हो जाते हैं और आगे बढ़ने में स्वयं कोअसमर्थ पाते हैं। 
परिणाम होता है  - व्याकुलता, व्यग्रता - अप्रसन्नता और बेबसी। 

वहीं दूसरी ओर जिसका मन एक बिंदु पर केंद्रित होता है उसे सहज ही मनवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है।
वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है और प्रसन्न एवं शांत रहता है।

         ध्यान अथवा सुमिरन में भी ऐसा ही होता है।
अगर हमारे विचार बिखरे हुए हों - अगर मन सभी दिशाओं में भटक रहा हो तो हम सुमिरन पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते। 
और ध्यान न जुड़ने की वजह से बेचैन हो जाते हैं - कभी-कभी परेशान और उत्तेजित भी हो जाते हैं।
जितना अधिक हम ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करते हैं, उतनी ही बेचैनी और बढ़ जाती है। हम और अधिक बेचैन हो जाते हैं। 
लेकिन जब तक हमारे मन में कुछ विचार रहेंगे तो कुछ न कुछ चिंताएं और अशांति भी अवश्य ही रहेगी।
इसलिए - ध्यान और सुमिरन की कुंजी, किसी एक जगह या प्वाइंट पर या किसी विचार पर ध्यान केंद्रित करना नहीं  - बल्कि सभी विचारों से मुक्त होना है। 
इच्छाओं - आशा मंशा और विचारों से रहित होने की स्थिति का नाम ही ध्यान एवं शांति है ।

और दूसरी तरफ - अगर देखा जाए तो विचारों से मुक्त होना इतना आसान भी नहीं है।
मानव मन हमेशा व्यस्त रहता है - हमेशा कुछ न कुछ सोचता ही रहता है। अपने सामने आने वाली और हर दिखने वाली चीज का पीछा करता रहता है। कोई न कोई विचार तो हमेशा मन में उठते ही रहते हैं। यहां तक कि सोते हुए भी हमारा मन चलता ही रहता है। 

इसलिए, शुरुआत में - संत और महात्मा, ग्रंथ शास्त्र, और सत्गुरु गुरु हमें किसी एक केंद्र-बिंदु पर - किसी मंत्र, शब्द या किसी छवि पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश देते हैं। भजन कीर्तन और जाप करने को कहते हैं। 
लेकिन अंततः -  सभी ग्रन्थ शास्त्र एवं गुरु हमें इस सब से ऊपर उठने की प्रेरणा देते हैं। 
हर चीज से परे - अर्थात नाम रुप आकार, शब्द और विचार इत्यादि सब से परे जाने के लिए कहते हैं। 
एक ऐसी अवस्था में - जहां केवल निरंकार हो। और निरंकार के अलावा कुछ भी नहीं। 

लेकिन उस अवस्था तक पहुँचने के लिए पहले हमें अपने मन को "सब-कुछ" से हटा कर किसी एक "कुछ" पर केंद्रित करने का अभ्यास करना चाहिए । 
और फिर धीरे धीरे उस "कुछ" को भी छोड़ कर "कुछ-नहीं" की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए। 
पहले एवरी-थिंग से सम-थिंग और अंततः सम-थिंग से नथिंग - अर्थात निरंकार। 
                                 " राजन सचदेव "

7 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. बहुत बार ये प्रश्न उठता है कि ध्यान किस का करना चाहिए - साकार का या निराकार का।
    इस विषय को विस्तार से समझाने के लिए धन्यवाद
    जे. के.

    ReplyDelete
  3. Dhan nirankar ji mahapurso ji sahe disha dikhany ke sukrana ji🌹🌹🙏🙏

    ReplyDelete
  4. Absolutely right ji. Bahut hee uttam bachan han ji .🙏

    ReplyDelete
  5. पिंड से ब्रह्मांड की यात्रा

    ReplyDelete
  6. Very good interpretation. I can just explain it similarly; the way at the end it is said “Nothingness”, Sure. I would become thoughtless(nirvichar); then go back into one’s “self” and the self become selfless. Finally spread into The Brahma & again nothingness becomes everything non matter!!

    ReplyDelete

दर्पण के सामने - भगवान कृष्ण

एक बार, भगवान कृष्ण आईने के सामने खड़े थे अपने बालों और पोशाक को ठीक कर रहे थे। वह अपने सिर पर विभिन्न मुकुटों को सजा कर देख रहे थे और कई सु...