Wednesday, July 13, 2022

गुरु पूर्णिमा - गुरु के प्रति समर्पित परंपरा


गुरु पूर्णिमा एक भारतीय और नेपाली आध्यात्मिक परंपरा है - जो आध्यात्मिक और शैक्षणिक गुरुओं के प्रति समर्पित है।
ऐसे गुरुओं के प्रति - जो स्वयं विकसित एवं  प्रबुद्ध हैं और अपने ज्ञान को बिना किसी स्वार्थ के बाँटने के लिए तैयार हैं। 

ऐसा माना जाता है कि गुरु के मार्गदर्शन के बिना व्यक्ति अंधा होता है।
बच्चे के पहले गुरु होते हैं उसके माता और पिता।
फिर अन्य गुरु भी माता या पिता का ही रुप बन जाते हैं।

शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य दो बार जन्म लेता है - जिसे द्विज के नाम से जाना जाता है।
पहला जन्म पिता और माता के मिलन से - और दूसरा - जब वह एक अच्छे और पूर्ण  गुरु द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है।

गुरु एक पिता के रुप में माँ गायत्री - अर्थात शास्त्रों की मदद से ज्ञान प्रदान करता है 
अर्थात शास्त्रों में वर्णित ज्ञान के अनुसार विस्तार से समझाता है । 
गायत्री का अर्थ है शास्त्र एवं शास्त्रोचित ज्ञान। 
दूसरे शब्दों में गुरु को पिता और शास्त्रों एवं साहित्य को माता माना गया है - 
क्योंकि गुरु - शास्त्रों और प्रामाणिक पुस्तकों की सहायता से ही पढ़ाते हैं।

गुरु पूर्णिमा का त्योहार भारत और नेपाल के हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ (जुलाई-अगस्त) के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
जैसे पूर्णिमा का चाँद पूर्णता का प्रतीक है। वैसे ही गुरु-पूर्णिमा इस विश्वास का प्रतीक है कि गुरु पूर्ण है। 

यदि हमें गुरु पर विश्वास ही न हो - तो हम उन से कुछ भी नहीं सीख सकते। 
कुछ भी सीखने के लिए हमें अपने गुरु - अपने शिक्षक पर विश्वास होना चाहिए।
अगर हमें वांछित विषय में उनके ज्ञान के बारे में संदेह है तो हम उनसे कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे ।
इसीलिए , हम हमेशा एक ऐसे गुरु को खोजने का प्रयास करते हैं, जिसे उस विषय में पूर्ण ज्ञान हो।
 और जब गुरु के ज्ञान और उनके अनुभव के बारे में हमारी जिज्ञासा शांत हो जाती है, तो हमें स्वयंमेव ही उनकी शिक्षाओं पर भी विश्वास होने लगता है।

गुरु-पूर्णिमा केवल गुरु के प्रति शिष्य की कृतज्ञता का ही प्रतीक नहीं है - 
बल्कि इस विश्वास की भी पुष्टि है कि पूर्णिमा के चाँद की तरह ही गुरु भी पूर्ण है।
लेकिन यहां एक सवाल भी उठता है - कि क्या बिना शिष्यों के कोई गुरु पूर्ण हो सकता है?

एक स्कूल में एक शिक्षक ने एक बच्चे से पूछा:
तुम्हारी उम्र क्या है ?
बच्चे ने कहा - छह साल" ।
"और तुम्हारे पापा कितने साल के हैं?"
"वह भी छह साल के हैं ।"
"ये कैसे संभव है?" शिक्षक ने पूछा।
बच्चे ने कहा - "क्योंकि मेरे जन्म के बाद ही तो वो पापा बने थे " 

कोई व्यक्ति तब तक पिता नहीं होता जब तक कि उसकी कोई संतान न हों।
वह पिता तो तभी बनता है जब उसकी संतान जन्म लेती है।
इसी तरह, एक गुरु भी तभी पूर्ण गुरु बनता है जब उसके शिष्य भी पूर्णता को प्राप्त करते हैं।

इसलिए, गुरु के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करने के लिए केवल गुरु की स्तुति गाना - उसकी प्रशंसा करना और उपहार देना ही काफी नहीं है।
गुरु की शिक्षाओं को सही ढंग से समझ कर - उन्हें आत्मसात कर के जीवन में धारण करके पूर्णता को प्राप्त करना भी ज़रुरी है ।

जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों की उपलब्धियों पर प्रसन्न और गौरवान्वित होते हैं - उसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों को ऊंचाइयों और पूर्णता को प्राप्त करते हुए देखकर संतुष्ट और गौरवान्वित महसूस करते हैं।

लेकिन जो अपने शिष्यों से ईर्ष्या करता हो -  जो नहीं चाहता कि उसके शिष्य विकसित हों और पूर्णता तक पहुँचें - ऐसे गुरु को एक पूर्ण गुरु नहीं माना जा सकता।
बच्चों को समृद्ध होते देख कर माता-पिता को अपने आप में एक उपलब्धि का अहसास होता है कि उन का प्यार और बलिदान काम आया है - 
कि उन्होंने माता-पिता के रुप में अपनी भूमिका पूरी की है - अपना कर्तव्य ठीक से निभाया है।
इसी प्रकार शिष्यों को सिद्ध होते हुए और अपने समान ऊँचाइयों को प्राप्त करते हुए देखकर, गुरु को भी लगता है कि उन्होंने गुरु के रुप में अपनी भूमिका पूरी तरह निभाई है। उनका सिखाना और समझाना-बुझाना काम आया है। 

इसलिए गुरु के प्रति हमारी सच्ची कृतज्ञता तब होगी जब हम स्वयं भी पूर्णता प्राप्त करने की दिशा में - 
और सही मायने में गुरु को प्रसन्न एवं संतुष्ट करने के लिए गंभीरता से कोशिश करना शुरु कर देंगे। 
आइए - उस पूर्णिमा को प्राप्त करने के लिए हम सभी प्रभु से प्रार्थना करें और आशीर्वाद की कामना करें। 
                                                    " राजन सचदेव "

1 comment:

  1. बिल्कुल सही गुरु जी, सादर प्रणाम्🙇‍♀️

    ReplyDelete

Itnay Betaab kyon hain - Why so much restlessness?

 Itnay betaab - itnay beqaraar kyon hain  Log z aroorat say zyaada hoshyaar  kyon hain  Moonh pay to sabhi dost hain lekin Peeth peechhay d...