Wednesday, August 26, 2020

एक प्रश्न - बार बार नहीं पाइए

करोल बाग देहली से एक प्रश्न आया है:
Dhan nirankar Ji
Can you please elaborate
Kabir Gur Ki Bhagat Kar Chad Mithya Ras Choj
Bar Bar nahin Pahey Maush Janam ki Mauj
                        (कबीर गुरु की भगति करि तज मिथ्या रस चोज
                         बार बार नहीं पाहिए , मनुश जन्म की मौज)
Regards    
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पहली बात तो यह है कि जब भी हम किसी पुरातन संत, महानपुरुष के कथन या किसी ग्रन्थ के हवाले से कोई शब्द या दोहा इत्यादि सुनें तो उसकी सत्यता को जाँच लेना चाहिए। हो सकता है कि जिस से हमने सुना - उसने भी किसी और से सुना हो और वो ठीक न हो या उन्होंने ठीक से न सुना हो। 
कबीर जी का दोहा इस प्रकार है:
                         कबीर हरि की भगति करि, तजि विषया रस चोज।
                         बार बार नहीं पाइए, मनुशा जन्म की मौज॥35॥

यदि इसे सही ढंग से पढ़ेंगे तो इनके अर्थ कुछ मुश्किल नहीं हैं।

अर्थात कबीर जी कहते हैं कि हरि की - ईश्वर परमात्मा - निरंकार प्रभु की भक्ति करो। 
संसार के रस भोग (रुप ,रस, गंध, शब्द, एवं स्पर्श) यदि विषय का रुप ले लें - विकार बन जाएं - अर्थात हमारा सारा ध्यान इन विषयों पर ही केंद्रित होने लगे - तो उनका त्याग करने की कोशिश करो - क्योंकि मनुष्य जन्म बार बार नहीं मिलता इसलिए इस जन्म में ही अपने जीवन का ध्येय पूरा कर लो और इसे सफल बना लो। 
                 

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