Tuesday, August 25, 2020

प्रसन्न रहना है तो प्रशंसा सुनने की इच्छा त्याग दो

प्रसन्न रहना है तो हर समय अपनी प्रशंसा सुनने की इच्छा त्याग दो। 
क्योंकि वैसे भी सदैव तो किसी की भी प्रशंसा नहीं होती। 
ज़रा सा काम बिगड़ने पर लोग भगवान को भी कोसने लगते हैं -
तो हमारी क्या बिसात है ?
            "कुछ तो लोग कहेंगे - लोगों का काम है कहना"
इसलिए लोगों की बातों की परवाह न करते हुए सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ते रहें 
और श्रद्धा तथा ईमानदारी के साथ सत्य-कार्य में लगे रहें। 
सत्य-कार्य करते हुए संतुष्ट रह कर जीवन जीएं  - 
                              आत्मन्येव आत्मनः तुष्टः (भगवद गीता)
स्वयं में संतुष्ट एवं मग्न रहने में जो आनन्द है वह संसार के चंद लोगों की वाह-वाह से कहीं ज़्यादा अच्छा है  
क्योंकि जो लोग आज प्रशंसा कर रहे हैं, वही कल किसी बात पर निंदा भी करने लगेंगे। 
इसलिए ब्रह्मज्ञानी संतजन निंदा एवं स्तुति - दोनों की ओर ध्यान न देते हुए निरंकार प्रभु के सुमिरन में मगन रहते हैं। 
                                                            ' राजन सचदेव ' 

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