Tuesday, August 25, 2020

कबीर पगरा दूर है - आए पहुँचै सांझ

Comments section में किसी सज्जन ने एक प्रश्न भेजा है:

कृपया इस शब्द/ दोहे का अर्थ समझाएं :
                        कबीर पगरा दूर है - आए  पहुँचै सांझ
                       जन जन को मन राखती, वेश्या रहि गई बांझ
        ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


मेरे विचार में इस का भावार्थ इस प्रकार है :

कबीर जी कहते हैं कि मुक्ति का मार्ग अभी बहुत दूर है, और जीवन की शाम अर्थात बुढ़ापा आ चुका है।
हम अपना पूरा जीवन अपनी इंद्रियों को प्रसन्न करने में लगा देते हैं - रुप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श इत्यादि के सुखों में ही उलझे रहते हैं और आत्मा उपेक्षित रह जाती है। आत्मिक उन्नति - जो कि मानव जीवन का परम उद्देश्य है - उस तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता। 
कबीर जी एक प्रमाण देते हुए कहते हैं कि स्त्री रुपी मानव मन इंद्रियों को संतुष्ट और प्रसन्न करने में ही लगा रहता है और मोक्ष रुपी संतान से वंचित रह जाता है। 

जैसे मातृत्व की भावना एक महिला के लिए संतुष्टि की उच्चतम भावना है - इसी तरह, मानव मन की सबसे बड़ी इच्छा स्वतंत्रता एवं मुक्ति प्राप्त करना है।
लेकिन विडंबना यह है कि हम इंद्रियों को सांसारिक सुखों के साथ संतुष्ट करने में लगे रहते हैं - और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूल जाते हैं - जो है - मोक्ष प्राप्ति।
                              ' राजन सचदेव '

2 comments:

Itnay Betaab kyon hain - Why so much restlessness?

 Itnay betaab - itnay beqaraar kyon hain  Log z aroorat say zyaada hoshyaar  kyon hain  Moonh pay to sabhi dost hain lekin Peeth peechhay d...